प्रिय मित्रों २०१० वर्ष के अंतिम दिन और नव वर्ष का आगमन की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें . आहार सम्बन्धी जानकारी में मैं आपको पिछले ब्लोग्स में दे चुका हूँ ,आज आहार के बारे में कुछ अन्य विशेष जानकारी दे रहा हूँ , हम में से बहुत से लोग रस (जो की जिव्हा का ग्राह्य विषय है ). के बारे में जानते हैं पर बहुत से लोग नहीं जानते इसलिए इस बारे में विस्तार से वर्णन कर रहा हूँ . रस छः प्रकार के होते हैं मधुर अम्ल लवण तिक्त (कड़वा ) उष्ण (तीखा ) कषाय .
यह बल (strength) के आधार पर उत्तरोत्तर लघु होते हैं , अब इनकी विशेषताओं को बताऊँगा ,जैसे मधुर रस यह जिव्हा को अतिप्रिय रस है पृथ्वी और आप्य (जल ) महाभूत प्रधान है यह शरीर को संहनन और बल प्रदान करता है
अम्ल रस यह आग्नेय है अर्थात अग्नि और जल महाभूत प्रधान है यह सर्वश्रेष्ठ वात शामक माना गया है ,यह हृदय के लिए लाभदायक है ,
लवण रस अग्नि और वायु महाभूत प्रधान है , इस रस का सेवन अल्प ही करना उचित है क्योंकि की यह शरीर में क्लेद को बढ़ाता है .....
Thursday, December 30, 2010
Tuesday, December 14, 2010
sadar namaskar
प्रिय मित्रों ,
सादर नमस्कार बड़े दिनों बाद आपके समक्ष उपस्थित हुआ हूँ , शीत ऋतू या कहें की हेमंत ऋतू का आगमन हो चुका है , क्रिसमस और नव वर्ष का आगमन भी होने को है , आज मैं आपको शीत ऋतू की चर्या याने की ठंडो में किस तरह का आहार तथा विहारे करना चाहिए इस बारे में जानकारी दूंगा , शीत ऋतू में ठंडी हवाओं के कारन अग्नि प्रबल होती है यानि की जैसा भी आहार आप करते हैं उसे पचाने की क्षमता शरीर में होती है इस काल को विसर्ग काल कहा जाता है क्योंकि इसमें सूर्या का बल हीन तथा चन्द्रमा बलशाली होता है ,इस काल में शरीर का बल उत्तम होता है , उष्ण और स्निग्ध आहार लेना है , इस ऋतू में उरद की दाल का सेवन करना उत्तम रहता है. इस काल में व्यायाम भी करना चाहिए ,जोग्गिंग उत्तम व्यायाम है , योग करने वाले योग भी करें
सादर नमस्कार बड़े दिनों बाद आपके समक्ष उपस्थित हुआ हूँ , शीत ऋतू या कहें की हेमंत ऋतू का आगमन हो चुका है , क्रिसमस और नव वर्ष का आगमन भी होने को है , आज मैं आपको शीत ऋतू की चर्या याने की ठंडो में किस तरह का आहार तथा विहारे करना चाहिए इस बारे में जानकारी दूंगा , शीत ऋतू में ठंडी हवाओं के कारन अग्नि प्रबल होती है यानि की जैसा भी आहार आप करते हैं उसे पचाने की क्षमता शरीर में होती है इस काल को विसर्ग काल कहा जाता है क्योंकि इसमें सूर्या का बल हीन तथा चन्द्रमा बलशाली होता है ,इस काल में शरीर का बल उत्तम होता है , उष्ण और स्निग्ध आहार लेना है , इस ऋतू में उरद की दाल का सेवन करना उत्तम रहता है. इस काल में व्यायाम भी करना चाहिए ,जोग्गिंग उत्तम व्यायाम है , योग करने वाले योग भी करें
Tuesday, November 2, 2010
diet plan(general) for cancer patients
प्रिय मित्रों नमस्कार ,
आज मैं आपको कैंसर के मरीजों के लिए उपयुक्त आहार बताऊँगा , कैंसर के मरीजों के लिए जैसा की उन्हें अग्निमांद्य होता है लघु एवं स्निग्ध आहार लेना चाहिए , गोघृत का सेवन इनके लिए अत्यधिक लाभप्रद है, भोजन के लेने के लिए एक बार में अधिक गरिष्ठ भोजन न लें ,क्योंकि उससे गैस अपचन जैसी समस्याएँ हो सकती हैं . ४ बार में थोडा थोडा भोजन लें , वैसे प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए तथा पाचक अग्नि के बल- अबल की स्तिथि को देखते हुए आहार का निर्धारण करना चाहिए , इसीलिए मैं संपूर्ण आयुर्वेदीय चिकित्सा उसी को मानता हूँ जिसमे मात्र औषध ही नहीं वरन आहार तथा विहार यानि की दैनिक जीवन की आदतें इन सभी का नियमन होता है , औषध आहार विहार तीनों से मिलकर ही संपूर्ण चिकित्सा होती है , शीघ्र ही आप मुझसे इंदौर में संपर्क कर सकेंगे .मैं अपने बैठने का स्थान और समय शीघ्र ही ब्लॉग पर पोस्ट करूंगा आपके सहयोग के लिए धन्यवाद्
आज मैं आपको कैंसर के मरीजों के लिए उपयुक्त आहार बताऊँगा , कैंसर के मरीजों के लिए जैसा की उन्हें अग्निमांद्य होता है लघु एवं स्निग्ध आहार लेना चाहिए , गोघृत का सेवन इनके लिए अत्यधिक लाभप्रद है, भोजन के लेने के लिए एक बार में अधिक गरिष्ठ भोजन न लें ,क्योंकि उससे गैस अपचन जैसी समस्याएँ हो सकती हैं . ४ बार में थोडा थोडा भोजन लें , वैसे प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए तथा पाचक अग्नि के बल- अबल की स्तिथि को देखते हुए आहार का निर्धारण करना चाहिए , इसीलिए मैं संपूर्ण आयुर्वेदीय चिकित्सा उसी को मानता हूँ जिसमे मात्र औषध ही नहीं वरन आहार तथा विहार यानि की दैनिक जीवन की आदतें इन सभी का नियमन होता है , औषध आहार विहार तीनों से मिलकर ही संपूर्ण चिकित्सा होती है , शीघ्र ही आप मुझसे इंदौर में संपर्क कर सकेंगे .मैं अपने बैठने का स्थान और समय शीघ्र ही ब्लॉग पर पोस्ट करूंगा आपके सहयोग के लिए धन्यवाद्
Saturday, October 30, 2010
naye clinic ke baare me
प्रिय मित्रों नमस्कार ,
आप लोगों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये ,आप सभी का जीवन मंगलमय और स्वास्थ्यप्रद रहे ऐसी
भावना के साथ आयु लाइफ क्लिनिक के सभी सदस्यों की और से बधाई . आप लोगों से शीघ्र ही पुनः वार्तालाप होगा, नयी जानकारियों के साथ ,
आप लोगों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये ,आप सभी का जीवन मंगलमय और स्वास्थ्यप्रद रहे ऐसी
भावना के साथ आयु लाइफ क्लिनिक के सभी सदस्यों की और से बधाई . आप लोगों से शीघ्र ही पुनः वार्तालाप होगा, नयी जानकारियों के साथ ,
Tuesday, October 19, 2010
manas rog aur ayurved
प्रिय मित्रों , मानस रोगों के उपचार के लिया आयुर्वेद में शिरोधरा का महत्वपूर्ण योगदान है . इस चिकित्सा से मनुष्य के मस्तिष्क को आराम मिलता है , कई बार anxiety and depression के केस देखने को मिलते हैं जिनमे की मनुष्य की सोचने और समझने की शक्ति हीन हो जाती है , confusion and dilemma बना ही रहता है . मनुष्य की सोच विचार सही करता भी है तो वह अपनी भावनाओं को सही तरह से व्यक्त नहीं कर पाता जिसके कारण गुस्से और चिड्चिदेपन का शिकार हो जाता है .
शिरोधरा प्रातःकाल में की जाने वाली आयुर्वेदीय पंचकर्म therapy है .इस के द्वारा अनिद्रा , मानसिक तनाव अशांति और अन्य CNS AND पनस अर्थात brain and spinal chord and other neurological disorders में लाभ होता है , इसके साथ आहार विहार और औषध का प्रयोग किया जाता है जो मानसिक स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त करने में मदद करता है .
शिरोधरा प्रातःकाल में की जाने वाली आयुर्वेदीय पंचकर्म therapy है .इस के द्वारा अनिद्रा , मानसिक तनाव अशांति और अन्य CNS AND पनस अर्थात brain and spinal chord and other neurological disorders में लाभ होता है , इसके साथ आहार विहार और औषध का प्रयोग किया जाता है जो मानसिक स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त करने में मदद करता है .
Monday, October 18, 2010
manas rogon ke baare me...........
प्रिय मित्रों , आज मैं मानस रोगों के अन्य कारणों के बारे में बताऊँगा और साथ में उनसे बचाव के उपाय भी बताऊँगा .
१. किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के विछोह में. इस के कारण मन उद्वेलित होता रहता है.
अब मानस रोगों से बचाव के बारे में बतलाऊँगा .
१. हम सभी जानते हैं की हमारे मस्तिष्क के दो भाग होते हैं ( two cerebral hemispheres) होते हैं जो की परस्पर विपरीत दिशाओं की मानसिक एवं शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं , यह हुयी आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की बात अब आयुर्वेदानुसार नाड़ियों का वर्णन है इडा और पिंगला . अपने कभी अनुभव किया हो तो नाक के एक छिद्र से गर्म और दुसरे से ठंडी हवा का वहां होता है इसका अर्थ यह है यह दोनों नाड़ियाँ शरीर का तापमान का नियंत्रण रखती हैं , वास्तव में इन दोनों का सही संतुलन अतिआवश्यक है , वास्तव में मस्तिष्क को सही कार्य करने के लिए दो भागों का सही संतुलन आवश्यक है. यह संतुलन प्राणायाम और योग के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है . योग के द्वारा मानसिक एवं शारीरिक क्रियाओं में संतुलन के द्वारा ही स्वस्थ रहा जा सकता है . अगले ब्लॉग में अन्य उपायों के बारे में बतलाऊँगा.
१. किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के विछोह में. इस के कारण मन उद्वेलित होता रहता है.
अब मानस रोगों से बचाव के बारे में बतलाऊँगा .
१. हम सभी जानते हैं की हमारे मस्तिष्क के दो भाग होते हैं ( two cerebral hemispheres) होते हैं जो की परस्पर विपरीत दिशाओं की मानसिक एवं शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं , यह हुयी आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की बात अब आयुर्वेदानुसार नाड़ियों का वर्णन है इडा और पिंगला . अपने कभी अनुभव किया हो तो नाक के एक छिद्र से गर्म और दुसरे से ठंडी हवा का वहां होता है इसका अर्थ यह है यह दोनों नाड़ियाँ शरीर का तापमान का नियंत्रण रखती हैं , वास्तव में इन दोनों का सही संतुलन अतिआवश्यक है , वास्तव में मस्तिष्क को सही कार्य करने के लिए दो भागों का सही संतुलन आवश्यक है. यह संतुलन प्राणायाम और योग के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है . योग के द्वारा मानसिक एवं शारीरिक क्रियाओं में संतुलन के द्वारा ही स्वस्थ रहा जा सकता है . अगले ब्लॉग में अन्य उपायों के बारे में बतलाऊँगा.
Thursday, October 7, 2010
maanas rog
प्रिय मित्रों नमस्कार ,
लम्बे अंतराल के बाद आपके समक्ष प्रस्तुत हुआ हूँ, आज मैं आपको मानस रोगों के कारण बतलाऊँगा जैसा की आचार्यों ने शास्त्रों में वर्णन किया है , मनुष्य की उत्पत्ति में चौबीस तत्वों का संयोग है , इनमे मन , बुद्धि अहंकार यह तत्व मनुष्य की सोचने समझने और यत्न पूर्वक काम करने में मदद करते हैं , इन्ही विकृति से मानस रोग उत्पन्न होते हैं ,
१. अत्यधिक धूम्रपान एवं मद्यपान (शराब ) पीने के कारण मस्तिष्क के केंद्र प्रभावित होते हैं , बोलने चलने के साथ बुद्धि का भी नाश करते हैं , इनके सेवन से नाड़ियों में दुर्बलता और विवेक का नाश होता है ,मनुष्य अवसाद का शिकार हो जाता है, मद्यपान करने के बाद मनुष्य जिस स्फूर्ति का अनुभव करता है उसका कारण यह है की शराब अपने तीक्ष्ण और शीघ्र गति करने के कारण मन और बुद्धि को उत्तेजित करती है और मनुष्य के मन में एक साथ अनेक विचार आने लगते हैं वह कभी प्रसन्ना तो कभी दुखी हो जाता है , इस उत्तेजना के कारण मन और बुद्धि थक जाते हैं , इसके कारण मनुष्य अवसाद का शिकार हो जाता है .
२. किसी पवित्र स्थल पर अपवित्र कार्य करने के कारण किसी देव गुरु भद्र पुरुष का अपमान करने से , मैं जानता हूँ की आजकल के युग में कोई इस बात को इतना महत्वा नहीं देता पर शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है जिसके पीछे भी रहस्य है , यह बात भी परम सत्य है , इसके पीछे वैज्ञानिक कारण क्या हैं यह तो नहीं पता पर
ऐसा देखा गया है .
३. मन में किसी दुर्भावना को रखना , किसी के प्रति शत्रुता रखना , यदि आप किसी के प्रति द्वेष भावना रखते है तो आप स्वयं को भी तनाव ग्रस्त और चिंतित पाते हैं , मन में बदले की भावना रखना यह भी मानस रोगों के कारण है हमें अपने मन में क्षमा और दया रखना चाहिए , क्षमा करने से मन साफ़ होता है और इसके बाद आप तनाव मुक्त हो जाते हैं , जैन दर्शन में तो क्षमा का बहुत महत्वा बताया है
अभी और भी बहुत से कारण हैं इसकी चर्चा आगे करूंगा .
लम्बे अंतराल के बाद आपके समक्ष प्रस्तुत हुआ हूँ, आज मैं आपको मानस रोगों के कारण बतलाऊँगा जैसा की आचार्यों ने शास्त्रों में वर्णन किया है , मनुष्य की उत्पत्ति में चौबीस तत्वों का संयोग है , इनमे मन , बुद्धि अहंकार यह तत्व मनुष्य की सोचने समझने और यत्न पूर्वक काम करने में मदद करते हैं , इन्ही विकृति से मानस रोग उत्पन्न होते हैं ,
१. अत्यधिक धूम्रपान एवं मद्यपान (शराब ) पीने के कारण मस्तिष्क के केंद्र प्रभावित होते हैं , बोलने चलने के साथ बुद्धि का भी नाश करते हैं , इनके सेवन से नाड़ियों में दुर्बलता और विवेक का नाश होता है ,मनुष्य अवसाद का शिकार हो जाता है, मद्यपान करने के बाद मनुष्य जिस स्फूर्ति का अनुभव करता है उसका कारण यह है की शराब अपने तीक्ष्ण और शीघ्र गति करने के कारण मन और बुद्धि को उत्तेजित करती है और मनुष्य के मन में एक साथ अनेक विचार आने लगते हैं वह कभी प्रसन्ना तो कभी दुखी हो जाता है , इस उत्तेजना के कारण मन और बुद्धि थक जाते हैं , इसके कारण मनुष्य अवसाद का शिकार हो जाता है .
२. किसी पवित्र स्थल पर अपवित्र कार्य करने के कारण किसी देव गुरु भद्र पुरुष का अपमान करने से , मैं जानता हूँ की आजकल के युग में कोई इस बात को इतना महत्वा नहीं देता पर शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है जिसके पीछे भी रहस्य है , यह बात भी परम सत्य है , इसके पीछे वैज्ञानिक कारण क्या हैं यह तो नहीं पता पर
ऐसा देखा गया है .
३. मन में किसी दुर्भावना को रखना , किसी के प्रति शत्रुता रखना , यदि आप किसी के प्रति द्वेष भावना रखते है तो आप स्वयं को भी तनाव ग्रस्त और चिंतित पाते हैं , मन में बदले की भावना रखना यह भी मानस रोगों के कारण है हमें अपने मन में क्षमा और दया रखना चाहिए , क्षमा करने से मन साफ़ होता है और इसके बाद आप तनाव मुक्त हो जाते हैं , जैन दर्शन में तो क्षमा का बहुत महत्वा बताया है
अभी और भी बहुत से कारण हैं इसकी चर्चा आगे करूंगा .
Tuesday, September 21, 2010
cancer se bachav aur badhne se rokne ke upaay
प्रिय मित्रों ,
पिछले ब्लॉग में मैंने आपको कैंसर होने का मूल कारण बताया था . अब मैं आपको बचाव और बढ़ने से रोकने का उपाय बताऊँगा , सबसे पहले जिन जिन कारणों को हम जानते हैं उनका त्याग करना अनिवार्य है .
जो लोग कैंसर के रोगी हैं वोह सुबह उठ कर प्राणायाम एवं योग करें , शुद्ध वायु अत्यधिक लाभदायक है , प्रतिदिन गाज़र मूली टमाटर का रस पियें , गरिष्ठ भोजन का त्याग करें . हलके और चिकनाई युक्ता आहार का सेवन करें ,चलना फिरना आपके स्वास्थ्य के लिए अतिआवश्यक है .
पिछले ब्लॉग में मैंने आपको कैंसर होने का मूल कारण बताया था . अब मैं आपको बचाव और बढ़ने से रोकने का उपाय बताऊँगा , सबसे पहले जिन जिन कारणों को हम जानते हैं उनका त्याग करना अनिवार्य है .
जो लोग कैंसर के रोगी हैं वोह सुबह उठ कर प्राणायाम एवं योग करें , शुद्ध वायु अत्यधिक लाभदायक है , प्रतिदिन गाज़र मूली टमाटर का रस पियें , गरिष्ठ भोजन का त्याग करें . हलके और चिकनाई युक्ता आहार का सेवन करें ,चलना फिरना आपके स्वास्थ्य के लिए अतिआवश्यक है .
Friday, September 17, 2010
cancer karkrog
प्रिय मित्रों नमस्कार, आज मैं आपको कैंसर यानि कर्करोग के बारे में जानकारी देने जा रहा हूँ . इस रोग के अनेक कारण होते हैं , जो की हम सब जानते हैं , जानने योग्य बात यह है की ये किन किन अंगो में हो सकता है , यह रोग शरीर के किसी भी अंग से शुरू होकर कही भी फैल सकता है क्योंकि कैंसर ग्रस्त कोशिका रक्त संचार के द्वारा एक प्रभावित भाग से दुसरे स्वस्थ भाग में पहुँच कर उसे भी कैंसर ग्रस्त कर सकती है . कैंसर एवं एड्स जैसी बिमारियों के भयानक होने का कारण यह है की ये मनुष्य के जींस और क्रोमोसोम पर हमला करती है
आचार्य चरक के अनुसार हमारे शरीर में पुरानी कोशिकाओं का नाश तथा नयी कोशिका निर्माण की प्रक्रिया निरंतर चलती है यहाँ ये बात ध्यान देने योग्य है की ये दोनों प्रक्रियाएं समान गति से होने के कारण हमें इसका अनुभव नहीं होता कैंसर में निर्माण की प्रक्रिया अनियंत्रित होती है और इसमें जो कोशिकाएं निर्मित होती हैं वे अविकसित और विकृत होने के कारण कार्य करने योग्य नहीं होती , शरीर के लिए अनुपयोगी सिद्ध होती हैं . चरकचार्य के अनुसार विकृत कोशिका निर्माण की प्रक्रिया को रोकना ही कैंसर का उपचार है जिससे नयी कोशिकाओं का निर्माण सही रूप से हो सके . आजकल कैंसर के उपचार के लिया chemo थेरपी का उपयोग किया जाता है जो की विषैली होती हैं आयुर्वेद में कैंसर को बढ़ने से रोकने के लिए उपचार कहे गए हैं इस विषय में आगे बहुत सारी चर्चा करना है जो की में आपको अगले ब्लोग्स में दूंगा
आचार्य चरक के अनुसार हमारे शरीर में पुरानी कोशिकाओं का नाश तथा नयी कोशिका निर्माण की प्रक्रिया निरंतर चलती है यहाँ ये बात ध्यान देने योग्य है की ये दोनों प्रक्रियाएं समान गति से होने के कारण हमें इसका अनुभव नहीं होता कैंसर में निर्माण की प्रक्रिया अनियंत्रित होती है और इसमें जो कोशिकाएं निर्मित होती हैं वे अविकसित और विकृत होने के कारण कार्य करने योग्य नहीं होती , शरीर के लिए अनुपयोगी सिद्ध होती हैं . चरकचार्य के अनुसार विकृत कोशिका निर्माण की प्रक्रिया को रोकना ही कैंसर का उपचार है जिससे नयी कोशिकाओं का निर्माण सही रूप से हो सके . आजकल कैंसर के उपचार के लिया chemo थेरपी का उपयोग किया जाता है जो की विषैली होती हैं आयुर्वेद में कैंसर को बढ़ने से रोकने के लिए उपचार कहे गए हैं इस विषय में आगे बहुत सारी चर्चा करना है जो की में आपको अगले ब्लोग्स में दूंगा
Sunday, September 12, 2010
आयुर्वेदमन्त्र: diabetic ketoacidosis
आयुर्वेदमन्त्र: diabetic ketoacidosis: "प्रिय मित्रों , आज मैं आपको diabetic ketoacidosis के बारे में बताना चाहूँगा जो की एक और बड़ी समस्या है जिसमे की इंसुलिन क..."
diabetic ketoacidosis
प्रिय मित्रों ,
आज मैं आपको diabetic ketoacidosis के बारे में बताना चाहूँगा जो की एक और बड़ी समस्या है जिसमे की इंसुलिन की कमी होने के कारण शरीर अपनी उर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वसा का पाचन करता है जिससे अम्लीय ketone bodies का निर्माण होता है जो की अत्यंत हानिकारक है इसके फलस्वरूप रक्त में अम्लता , शरीर में पानी की कमी तथा गहन श्वास ,तीव्र श्वास होती है , मित्रों इस स्थति से बचने के लिए हमें सावधानिया रखनी होंगी , सबसे पहले यदि आप मधुमेह के नए रोगी हैं तो हमें प्रयास यह करना होगा की शुरुवात में परहेज पर अधिक ध्यान दें क्योंकि यदि एक बार आप इंसुलिन पर निर्भर हो गए तो जीवन भर उसी पर निर्भर रहना होगा . ऐसी स्थिति में जब इंसुलिन बाहरी स्रोत से प्राप्त होने पर अग्नाशय उसका निर्माण बिलकुल ही बंद कर देगा. इस स्थिति को disuse atrophy कहते हैं . हमारा प्रयास यह है की पहले यह जानकारी प्राप्त करें की कितने प्रतिशत कोशिकाओं का ह्रास हुआ है. क्या उन कोशिकाओं को पुनः जीवित किया जा सकता है ,यदि नहीं किया जा सकता तो कम से कम शेष कोशिकाओं को बचाया जा सकता है ,और यदि पुनर्जीवित करने का प्रयास सफल होता है तो यह आशा की नयी किरण होगी क्योंकि एक बार diabetic ketoacidosis होने पर बचना मुश्किल है
आज मैं आपको diabetic ketoacidosis के बारे में बताना चाहूँगा जो की एक और बड़ी समस्या है जिसमे की इंसुलिन की कमी होने के कारण शरीर अपनी उर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वसा का पाचन करता है जिससे अम्लीय ketone bodies का निर्माण होता है जो की अत्यंत हानिकारक है इसके फलस्वरूप रक्त में अम्लता , शरीर में पानी की कमी तथा गहन श्वास ,तीव्र श्वास होती है , मित्रों इस स्थति से बचने के लिए हमें सावधानिया रखनी होंगी , सबसे पहले यदि आप मधुमेह के नए रोगी हैं तो हमें प्रयास यह करना होगा की शुरुवात में परहेज पर अधिक ध्यान दें क्योंकि यदि एक बार आप इंसुलिन पर निर्भर हो गए तो जीवन भर उसी पर निर्भर रहना होगा . ऐसी स्थिति में जब इंसुलिन बाहरी स्रोत से प्राप्त होने पर अग्नाशय उसका निर्माण बिलकुल ही बंद कर देगा. इस स्थिति को disuse atrophy कहते हैं . हमारा प्रयास यह है की पहले यह जानकारी प्राप्त करें की कितने प्रतिशत कोशिकाओं का ह्रास हुआ है. क्या उन कोशिकाओं को पुनः जीवित किया जा सकता है ,यदि नहीं किया जा सकता तो कम से कम शेष कोशिकाओं को बचाया जा सकता है ,और यदि पुनर्जीवित करने का प्रयास सफल होता है तो यह आशा की नयी किरण होगी क्योंकि एक बार diabetic ketoacidosis होने पर बचना मुश्किल है
Friday, September 10, 2010
diabetic foot
प्रिय मित्रों नमस्कार ,
आज मैं आपको diabetic फूट के बारे में जानकारी देना चाहता हूँ . वैसे तो मधुमेह बड़ी ही जटिल बीमारी है , परन्तु उसका भयानक पहलु यह भी है की इसमें यदि रक्त शर्करा की मात्रा बढ़ जाये तो छोटा से छोटा घाव नहीं भरता उसका कारण यह है की बढ़ी हुयी शर्करा बक्टेरिया और fungus के लिए अच्छा मीडिया होता है. diabetic foot होने के बारे में हम पहले जान चुके है , इसका प्रमुख कारण पैरों की नसों का सिकुड़ना तथा उनमे रक्त संचार कम होना है. जिसके कारण वहां अनेरोबिक बक्टेरिया उत्पन्न हो जाते हैं जिससे की gangrene हो जाती है , परिणाम स्वरुप amputation करना पड़ता है , आयुर्वेद में रक्त मोक्षण के द्वारा अशुद्ध रक्त को निकाल कर शुस्रुताचार्य के द्वारा बताये शल्य पध्धति से व्रण चिकित्सा की जाए तो शीघ्र ही लाभ मिलता है . इस पद्धति से घाव जल्दी भरता है ,तथा पुनः पैरों को नया जीवन मिलता है यदि आपको भी मधुमेह से जुडी कोई भी समस्या है तो संपर्क करें धन्यवाद
आज मैं आपको diabetic फूट के बारे में जानकारी देना चाहता हूँ . वैसे तो मधुमेह बड़ी ही जटिल बीमारी है , परन्तु उसका भयानक पहलु यह भी है की इसमें यदि रक्त शर्करा की मात्रा बढ़ जाये तो छोटा से छोटा घाव नहीं भरता उसका कारण यह है की बढ़ी हुयी शर्करा बक्टेरिया और fungus के लिए अच्छा मीडिया होता है. diabetic foot होने के बारे में हम पहले जान चुके है , इसका प्रमुख कारण पैरों की नसों का सिकुड़ना तथा उनमे रक्त संचार कम होना है. जिसके कारण वहां अनेरोबिक बक्टेरिया उत्पन्न हो जाते हैं जिससे की gangrene हो जाती है , परिणाम स्वरुप amputation करना पड़ता है , आयुर्वेद में रक्त मोक्षण के द्वारा अशुद्ध रक्त को निकाल कर शुस्रुताचार्य के द्वारा बताये शल्य पध्धति से व्रण चिकित्सा की जाए तो शीघ्र ही लाभ मिलता है . इस पद्धति से घाव जल्दी भरता है ,तथा पुनः पैरों को नया जीवन मिलता है यदि आपको भी मधुमेह से जुडी कोई भी समस्या है तो संपर्क करें धन्यवाद
Saturday, September 4, 2010
Friday, September 3, 2010
punsavan vidhi
प्रिय मित्रों , आज मैं आपको पुंसवन विधि के बारे में बताना चाहूँगा . आयुर्वेद शास्त्र में इसका वर्णन मिलता है. इस विधि से आप मनचाही संतान प्राप्त कर सकते हैं लड़का या लड़की. वास्तव में पुराने समय में यह पध्धति पुत्र प्राप्ति के हेतु की जाती थी . आजकल यह विवादित हो चुकी है तथा सरकार के नियमो के अनुसार यह पध्धति वोही व्यक्ति करवा सकता है जिसे पहले से पुत्री संतान हो . वास्तव में ऐसा कोई निषेध नहीं की यह पध्धति केवल पुत्र प्राप्ति के लिए की जाती है इस विधि से पुत्री भी प्राप्त हो सकती है . इस विधि में औषध युक्त तेल की बुँदे स्त्री के दोनों नासिका द्वार में छोड़ी जाती है , इसका वैज्ञानिक आधार है की जब शुक्र और रज का मिलन होता है तो वहां पुरुष के शुक्राणु के x अथवा y गुणसूत्र को आकर्षित करके मिलन करती है इसी तरह एह औषध अपने ऐच्छिक शुक्राणु को आकर्षित करके गर्भ का निर्धारण करती है .
Tuesday, August 31, 2010
eclumpsia and pre-eclumpsia
प्रिय मित्रों आप सोच रहे होंगे की मैं आजकल अपने ब्लॉग में संतान एवं प्रजोत्पत्ति के सम्बन्ध में अधिक जानकारी क्यों दे रहा हूँ, उसका कारन ये है की आयुर्वेद में स्वस्थ रहने के नियम बताये हैं और नए जीवन की शुरुआत यदि उत्तम होगी तो जीवन भर निरोग रहेगा और अपने देश का सक्षम नागरिक बनेगा . इसीलिए उत्तम स्वास्थ्य की शुरुआत माता पिता के जन्म देने से लेकर होनी चाहिए . अधिक संतान की चाह न करते हुए दो संतान काफी हैं . पिछले ब्लॉग में गर्भवस्था में देखभाल के बारे में चर्चा हुयी थी , अब गर्भावस्था में उच्च रक्त चाप . के बारे में निर्देश दूंगा .
इस हेतु मैं पुनः आग्रह करूंगा की संतान उत्पत्ति करने के पूर्व पंचकर्म अवश्य करवाएं जिससे की शारीर की संपूर्ण शुद्धि हो जाये , गर्भावस्था में उच्च रक्त चाप से बचने हेतु गुडूची / गिलोय का रस १० मी. ली. सुबह शाम पिए . अर्जुन क्षीर पाक का सेवन करें
इस हेतु मैं पुनः आग्रह करूंगा की संतान उत्पत्ति करने के पूर्व पंचकर्म अवश्य करवाएं जिससे की शारीर की संपूर्ण शुद्धि हो जाये , गर्भावस्था में उच्च रक्त चाप से बचने हेतु गुडूची / गिलोय का रस १० मी. ली. सुबह शाम पिए . अर्जुन क्षीर पाक का सेवन करें
Saturday, August 28, 2010
garbhini paricharya
प्रिय मित्रों पिछले पोस्ट में मैंने आपको बताया था की स्वस्थ संतान की प्राप्ति हेतु स्त्री और पुरुष दोनों को स्वस्थ होना आवश्यक है . स्वस्थ बीज से ही स्वस्थ वृक्ष उत्पन्न होते हैं अब इसके बाद आयुर्वेद में गर्भिणी स्त्री के देखभाल के बारे में बताया गया है उसके आहार और औषध के बारे में बताया गया है की गर्भिणी को प्रत्येक माह किन किन औषध एवं क्या आहार सेवन करना है , इन नियमो का पालन करने से गर्भावस्था में कष्ट नहीं होता तथा प्रसव भी सुगमता एवं सरलता से हो जाता है क्योंकि स्त्री का शारीर मृदु एवं स्निग्ध होता है (सोफ्ट एंड स्मूथ ) होता है स्त्री में बल हानि भी नहीं होती है और वह शीघ्र ही अपने कार्य करने योग्य हो जाती है. गर्भावस्था में स्त्री को हल्का आहार लेना चाहिए क्योंकि गर्भ होने के कारण अग्नि गर्भ के विकास में उपयोग होती है तथा जठराग्नि (digestive पॉवर ) कमजोर होती है और आंत्रो पर दबाव होता है . इस परिचर्या से सबसे बड़ा लाभ यह है की यह नोर्मल डेलिवरी करवाती है , सिजेरियन की आवश्यकता नहीं होती .
अधिक जानकारी तथा इलाज के लिए संपर्क करें धन्यवाद.
अधिक जानकारी तथा इलाज के लिए संपर्क करें धन्यवाद.
Saturday, August 21, 2010
guzarish
प्रिय मित्रों,
आप सभी को मेरी दी हुयी जानकारियां कैसी लग रही हैं, कृपया अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें , आप लोगों को किसी भी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या या उलझन में हैं तो संकोच न करें ,मुझसे पूछे , समय समय पर आप लोगों को स्वास्थ्य के उन बारीकियों से रूबरू करवाना चाहूँगा जिन पहलुओं से आप अभी तक अनभिज्ञ हैं , जीवन में ऐसी अनेक बातें हैं जिन्हें हम अनदेखा कर देते हैं जो आगे जाकर स्वास्थ्य की गंभीर समस्याओं का रूप ले लेती हैं .सबसे जरूरी ये जानना है , की आयुर्वेद शास्त्र क्या है , यह जीवन का विज्ञानं है क्योंकि इसमें उपचार बताने से पहले बिमारियों से कैसे बचा जा सकता है, और स्वस्थ कैसे रहा जा सकता है. आयुर्वेद में बहुत कुछ ऐसा है जो आधुनिक चिकित्सा शास्त्र से बहुत आगे है . ये जानकारी मैं ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुचना चाहूँगा . आशा है आप सभी को ये पसंद आएगा ,
प्रत्येक भारतवासी को भारतीय चिकित्सा पध्धति का और मेरा वन्दे मातरम
आप सभी को मेरी दी हुयी जानकारियां कैसी लग रही हैं, कृपया अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें , आप लोगों को किसी भी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या या उलझन में हैं तो संकोच न करें ,मुझसे पूछे , समय समय पर आप लोगों को स्वास्थ्य के उन बारीकियों से रूबरू करवाना चाहूँगा जिन पहलुओं से आप अभी तक अनभिज्ञ हैं , जीवन में ऐसी अनेक बातें हैं जिन्हें हम अनदेखा कर देते हैं जो आगे जाकर स्वास्थ्य की गंभीर समस्याओं का रूप ले लेती हैं .सबसे जरूरी ये जानना है , की आयुर्वेद शास्त्र क्या है , यह जीवन का विज्ञानं है क्योंकि इसमें उपचार बताने से पहले बिमारियों से कैसे बचा जा सकता है, और स्वस्थ कैसे रहा जा सकता है. आयुर्वेद में बहुत कुछ ऐसा है जो आधुनिक चिकित्सा शास्त्र से बहुत आगे है . ये जानकारी मैं ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुचना चाहूँगा . आशा है आप सभी को ये पसंद आएगा ,
प्रत्येक भारतवासी को भारतीय चिकित्सा पध्धति का और मेरा वन्दे मातरम
Thursday, August 19, 2010
gharelu upchaar
प्रिय मित्रों आज मैं आपको २ साल और उससे बड़े बच्चों में सर्दी खांसी और गला ख़राब हो जाने पर साधारण घरेलु उपचार बताऊँगा .
१. एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी और चौथाई चम्मच केसर पीस कर मिला कर पिलाने से जल्दी आराम पड़ जाता है.
२. गला ख़राब होने पर यष्टिमधु (मुलेठी) काला नमक , शहद , काली मिर्ची , सोंठ इन सबको थोडा थोडा मिलाकर चटा दें.
३. हाजमा ख़राब होने पर , नागकेसर , सोंठ . काला नमक ,अनार के दानो का चूर्ण (छाओं में सुखाकर पीसा हुआ ) मिला कर देने से मरोड़ उलटी दस्त में आराम पड़ता है .
४. हाजमा ख़राब होने पर पतली खिचड़ी १ भाग चावल एक भाग दाल २ भाग पानी में बनाये . उसमे सोंठ लौंग और थोड़ी सी काली मिर्च पीस कर ड़ाल दें.
१. एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्दी और चौथाई चम्मच केसर पीस कर मिला कर पिलाने से जल्दी आराम पड़ जाता है.
२. गला ख़राब होने पर यष्टिमधु (मुलेठी) काला नमक , शहद , काली मिर्ची , सोंठ इन सबको थोडा थोडा मिलाकर चटा दें.
३. हाजमा ख़राब होने पर , नागकेसर , सोंठ . काला नमक ,अनार के दानो का चूर्ण (छाओं में सुखाकर पीसा हुआ ) मिला कर देने से मरोड़ उलटी दस्त में आराम पड़ता है .
४. हाजमा ख़राब होने पर पतली खिचड़ी १ भाग चावल एक भाग दाल २ भाग पानी में बनाये . उसमे सोंठ लौंग और थोड़ी सी काली मिर्च पीस कर ड़ाल दें.
Monday, August 16, 2010
pichhe post ke aagey
प्रिय मित्रों ,
विगत पोस्ट में मैंने जो कहा उसके आगे यह है की उपरोक्त कारणों के फलस्वरूप बांझपन . स्त्रियों में दूध न बनना , उत्पन्न शिशु का बार बार अस्वस्थ होना , प्रसव के समय कष्ट होना यह सभी कठिनाइयाँ होती हैं .
समाधान _ इसका समाधान यह है की संतान उत्पत्ति के पूर्व स्त्री पुरुष दोनों का पूर्ण रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है . इसके लिए संतान को जन्मा देने के पूर्व शोधन (पंचकर्म) आवश्यक है . अधिक जानकारी के लिए आप मुझे मेल कर सकते हैं अथवा मुझसे याहू पर लाइव चाट कर सकते हैं धन्यवाद .......
विगत पोस्ट में मैंने जो कहा उसके आगे यह है की उपरोक्त कारणों के फलस्वरूप बांझपन . स्त्रियों में दूध न बनना , उत्पन्न शिशु का बार बार अस्वस्थ होना , प्रसव के समय कष्ट होना यह सभी कठिनाइयाँ होती हैं .
समाधान _ इसका समाधान यह है की संतान उत्पत्ति के पूर्व स्त्री पुरुष दोनों का पूर्ण रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है . इसके लिए संतान को जन्मा देने के पूर्व शोधन (पंचकर्म) आवश्यक है . अधिक जानकारी के लिए आप मुझे मेल कर सकते हैं अथवा मुझसे याहू पर लाइव चाट कर सकते हैं धन्यवाद .......
planning to have baby???
प्रिय मित्रों नमस्कार ,
आज मैं आपसे एक महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा करना चाहूँगा . प्रत्येक माता-पिता यह चाहते हैं की उनकी संतान स्वस्थ और सुंदर हो. सक्रिय और बौद्धिक रूप से भी सक्षम हो . यहाँ एक प्रश्न यह आता है की कैसे???
उत्तर है !!!!j
आयुर्वेद सिध्धान्तों के अनुसार स्वस्थ माता पिता की संतान स्वस्थ होती है जैसे की स्वस्थ बीज से स्वस्थ वृक्ष की उत्पत्ति होती है . आज के फास्ट फ़ूड के ज़माने मैं उचित आहार भी लोगों के द्वारा नहीं किया जाता .इस प्रकार वर्षों से संचित अपक्व तथा अशुद्ध (ठीक तरह से न पचा हुआ तथा अन्दर ही अन्दर विकृति को प्राप्त हुआ ) अन्नरस जब शरीर के अंगों में जाता है वोह वहां अवरोध पैदा करता है जिसके कारण सभी धातुओं का पोषण नहीं हो पाता रस से लेकर शुक्र तक सात धातु पर्याप्त पोषण प्राप्त नहीं होता . कुल मिला कर सरल भाषा में शुक्र (semen) निर्माण ठीक ढंग से नहीं होता तथा स्त्रियों में स्तन्य (मिल्क) और रज (ovum ) की उत्पत्ति सही नहीं होती
आज मैं आपसे एक महत्त्वपूर्ण विषय पर चर्चा करना चाहूँगा . प्रत्येक माता-पिता यह चाहते हैं की उनकी संतान स्वस्थ और सुंदर हो. सक्रिय और बौद्धिक रूप से भी सक्षम हो . यहाँ एक प्रश्न यह आता है की कैसे???
उत्तर है !!!!j
आयुर्वेद सिध्धान्तों के अनुसार स्वस्थ माता पिता की संतान स्वस्थ होती है जैसे की स्वस्थ बीज से स्वस्थ वृक्ष की उत्पत्ति होती है . आज के फास्ट फ़ूड के ज़माने मैं उचित आहार भी लोगों के द्वारा नहीं किया जाता .इस प्रकार वर्षों से संचित अपक्व तथा अशुद्ध (ठीक तरह से न पचा हुआ तथा अन्दर ही अन्दर विकृति को प्राप्त हुआ ) अन्नरस जब शरीर के अंगों में जाता है वोह वहां अवरोध पैदा करता है जिसके कारण सभी धातुओं का पोषण नहीं हो पाता रस से लेकर शुक्र तक सात धातु पर्याप्त पोषण प्राप्त नहीं होता . कुल मिला कर सरल भाषा में शुक्र (semen) निर्माण ठीक ढंग से नहीं होता तथा स्त्रियों में स्तन्य (मिल्क) और रज (ovum ) की उत्पत्ति सही नहीं होती
friends chat with me at yahoo messenger
dear friends chat with me at yahoo messenger my yahoo id is abhijaijinendra@yahoo.in. i am online whole day. i will be happy to serve you. you can communicate about any health problem.
Saturday, August 14, 2010
ek sandesh HIV/AIDS ke peediton ke naam
मेरे प्रिय ब्लॉग साथियों, आप सभी को आयु लाइफ क्लिनिक के पूरे स्टाफ की तरफ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये . आज हमारे समाज के सामने एक गंभीर समस्या है . वह है एड्स पीड़ितों पर लोगों द्वारा किया व्यव्हार(दुर्व्यवहार) . आज इस रोग को लेकर न जाने कितनी प्रकार की भ्रांतियां फैली हुयी हैं . सबसे पहले मैं आपको ये बता दूं की यह बीमारी संक्रमित रक्त से सामान्य व्यक्ति के रक्त में जाने से होती है . इस बीमारी के फैलने के अनेक कारण हैं . पर न जाने क्यों उस पर चरित्रहीनता का धब्बा लगा देते है .
१. असुरक्षित यौन संबंधों से .
२. संक्रमित रक्त के blood transfusion के कारण
३.गर्भवती स्त्री से गर्भ को,
४. ग्रामीण क्षेत्रों में झोला छाप चिकित्सकों की भरमार होने के कारण एक syringe से अनेक व्यक्तियों को injection लगाने के कारण
कारण कुछ भी हो , लेकिन किसी व्यक्ति को पता चल जाए की उसे एड्स है तो वह मरने के पहले जिन्दा लाश बन जाता है, दोस्तों एड्स का इलाज़ संभव है . आयुर्वेद की संहिताओं में इसका वर्णन मिलता है , आयुर्वेद में इस रोग को राजयक्ष्मा के नाम से जाना जाता है .
इस बीमारी का इलाज़ सिर्फ और सिर्फ आयुर्वेद द्वारा संभव है .
१. असुरक्षित यौन संबंधों से .
२. संक्रमित रक्त के blood transfusion के कारण
३.गर्भवती स्त्री से गर्भ को,
४. ग्रामीण क्षेत्रों में झोला छाप चिकित्सकों की भरमार होने के कारण एक syringe से अनेक व्यक्तियों को injection लगाने के कारण
कारण कुछ भी हो , लेकिन किसी व्यक्ति को पता चल जाए की उसे एड्स है तो वह मरने के पहले जिन्दा लाश बन जाता है, दोस्तों एड्स का इलाज़ संभव है . आयुर्वेद की संहिताओं में इसका वर्णन मिलता है , आयुर्वेद में इस रोग को राजयक्ष्मा के नाम से जाना जाता है .
इस बीमारी का इलाज़ सिर्फ और सिर्फ आयुर्वेद द्वारा संभव है .
Friday, August 13, 2010
to be continue
रखवा दी तो कचरा उसके अन्दर काम और आस पास ज्यादा दिखेगा . इसी के चलते उन्होंने अब वोह पेटी भी हटवा दी. खैर अव्यवस्थाओं की भरमार है किस किस की बात करोगे . आज से हम और आप यह प्रण लेते हैं की अपना वोट धर्म जाती समाज के बन्धनों को तोड़ के युवा योग्य एवं शिक्षित व्यक्ति को ही देंगे .
जय हिंद वन्दे मातरम . धन्यवाद मेरी कहा सुनी को झेलने के लिए ,हम और कर भी क्या सकते हैं, मेरे लेख से किसी मह्हान भद्र पुरुष की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो भाई क्षमा करना .
जय हिंद वन्दे मातरम . धन्यवाद मेरी कहा सुनी को झेलने के लिए ,हम और कर भी क्या सकते हैं, मेरे लेख से किसी मह्हान भद्र पुरुष की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो भाई क्षमा करना .
jai hind
प्रिय मित्रों,
प्रत्येक वर्ष की तरह हम इस वर्ष भी स्वतंत्रता दिवस अत्यधिक हर्षोल्लास के साथ मनाने को तैयार हैं , आज मैं आपको किसी शारीरिक अथवा मानसिक बीमारी के बारे में न बताकर एक ऐसी बीमारी के बारे में बताना चाहता हूँ जो इन सभी बिमारियों से कहीं अधिक भयंकर और गंभीर है.
वोह बीमारी है भ्रस्टाचार जो की अमीरों और नेताओं से शुरू होकर बाबुओं और चप्रासिओं तक फैली है और अंग्रेजों के ज़माने से चलती आ रही है और फल फूल रही है . इस बीमारी ने देश को खोखला कर दिया है . क्या कभी आपने शासकीय सेवाओं के गिरते स्तर को महसूस किया है / खैर इसके लिए भी हम आप लोग ही दोषी हैं . खाने खीलाने की परंपरा तो इतनी पक्की हो चुकी है की हम और आप इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि हमारी और आपकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की तरह ही है.
वैसे हमारे देश में सफाई नाम की कोई चीज़ है या नहीं जहाँ नज़र दौडाओ वहां कचरा ही दिखेगा. वैसे हमारे अशोक नगर की यह खासियत है की अगर गलती से नगर पालिका ने कचरे का बड़ी
प्रत्येक वर्ष की तरह हम इस वर्ष भी स्वतंत्रता दिवस अत्यधिक हर्षोल्लास के साथ मनाने को तैयार हैं , आज मैं आपको किसी शारीरिक अथवा मानसिक बीमारी के बारे में न बताकर एक ऐसी बीमारी के बारे में बताना चाहता हूँ जो इन सभी बिमारियों से कहीं अधिक भयंकर और गंभीर है.
वोह बीमारी है भ्रस्टाचार जो की अमीरों और नेताओं से शुरू होकर बाबुओं और चप्रासिओं तक फैली है और अंग्रेजों के ज़माने से चलती आ रही है और फल फूल रही है . इस बीमारी ने देश को खोखला कर दिया है . क्या कभी आपने शासकीय सेवाओं के गिरते स्तर को महसूस किया है / खैर इसके लिए भी हम आप लोग ही दोषी हैं . खाने खीलाने की परंपरा तो इतनी पक्की हो चुकी है की हम और आप इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि हमारी और आपकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की तरह ही है.
वैसे हमारे देश में सफाई नाम की कोई चीज़ है या नहीं जहाँ नज़र दौडाओ वहां कचरा ही दिखेगा. वैसे हमारे अशोक नगर की यह खासियत है की अगर गलती से नगर पालिका ने कचरे का बड़ी
Thursday, August 12, 2010
i am available online
from now onwards i am also available online for live consultation at http://www.liveperson.com/. . in the section of alternative medicine.
i will do my best to help you in diabetes, cancer. hiv/aids ,and many other diseses and supply medicines .
thank you all,
i will do my best to help you in diabetes, cancer. hiv/aids ,and many other diseses and supply medicines .
thank you all,
Wednesday, August 11, 2010
madhumeh me pairon ki dekhbhal
प्रिय मित्रों ,
सादर नमस्कार लम्बे समय तक इंतज़ार करवाने के लिए क्षमा चाहता हूँ . आज मैं आपको diabetes यानि की मधुमेह मैं पैरों की देखभाल कैसे करें इस के बारे में जानकारी देना चाहूँगा, यह सारी समस्या , पैरों में रक्त संचार के कम होने के कारण एवं बहुत अधिक समय तक एक ही स्थान पर बैठे रहने के कारण होती है . रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ने के साथ वहां रक्त संचार कम होने के कारन होती है . बचाव के उपाय ;-
१. पैरों को स्वच्छ रखें , आरामदायक जूते चप्पल पहने , देखा जाए तो संडल या चप्पल अधिक उपयुक्त है क्योंकि जूतों से हवा पास नहीं होती पसीने के कारण संक्रमण होने की संभावना होती है.
२, समय समय पर पैरों की अंगूठे उंगलिया चलाते रहें .इससे अधिक समय तक बैठकर कम करने वाले लोगों में रक्त संचार सही तरह से होता रहेगा .
३. सुबह शाम accupressure रोलर से पैरों का व्यायाम करें .
४. थकान दूर करने के लिए पैरों को गुनगुने गरम पानी में रखें . एक बाल्टी पानी गर्म करके उसमे एक चम्मच नमक डालकर उसमे पैरों को रखें .
५. सबसे महत्वा पूर्ण सूचना - अपनी रक्त शर्करा (blood suger ) नियमित जांचें .
धन्यवाद्
सादर नमस्कार लम्बे समय तक इंतज़ार करवाने के लिए क्षमा चाहता हूँ . आज मैं आपको diabetes यानि की मधुमेह मैं पैरों की देखभाल कैसे करें इस के बारे में जानकारी देना चाहूँगा, यह सारी समस्या , पैरों में रक्त संचार के कम होने के कारण एवं बहुत अधिक समय तक एक ही स्थान पर बैठे रहने के कारण होती है . रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ने के साथ वहां रक्त संचार कम होने के कारन होती है . बचाव के उपाय ;-
१. पैरों को स्वच्छ रखें , आरामदायक जूते चप्पल पहने , देखा जाए तो संडल या चप्पल अधिक उपयुक्त है क्योंकि जूतों से हवा पास नहीं होती पसीने के कारण संक्रमण होने की संभावना होती है.
२, समय समय पर पैरों की अंगूठे उंगलिया चलाते रहें .इससे अधिक समय तक बैठकर कम करने वाले लोगों में रक्त संचार सही तरह से होता रहेगा .
३. सुबह शाम accupressure रोलर से पैरों का व्यायाम करें .
४. थकान दूर करने के लिए पैरों को गुनगुने गरम पानी में रखें . एक बाल्टी पानी गर्म करके उसमे एक चम्मच नमक डालकर उसमे पैरों को रखें .
५. सबसे महत्वा पूर्ण सूचना - अपनी रक्त शर्करा (blood suger ) नियमित जांचें .
धन्यवाद्
Wednesday, July 21, 2010
parhej
प्रिय मित्रों ,
आजकल हम लोग देख रहे हैं की लोग मधुमेह एवं ह्रदय रोग से ग्रस्त रहते हैं . चिकित्सकों द्वारा उन्हें परहेज की सलाह दी जाती है . परहेज के नाम पर सबकुछ त्याग देते हैं एवं रूखा सूखा भोजन करने लगते हैं . मेरे इस ब्लॉग का उद्देश्य यह है की वास्तव में परहेज किस तरह किया जाना चाहिए. किन्ही परिस्थितियों में पूर्ण रूप से परहेज आवश्यक हो जाता है क्योंकि उसमे रक्त में वसा की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है. उन्हें बिलकुल चिकनाई रहित भोजन करना उपयुक्त है .कुछ समय तक ऐसा करना ठीक है आप तब तक ऐसा करें जब तक लेवल सामान्य न हो जाए. अत्यधिक परहेज करने से शारीर में रूखापन बढ़कर अन्य विकार जैसे त्वचा का सूखना , जोड़ों में तकलीफ कमजोरी आ सकती है . शारीर को ठीक से काम करने के लिए बहुत सारी चिकनाई की जरूरत नहीं होती बहुत थोड़ी सी चिकनाई से काम हो जाता है यहाँ पर एक बहुत महत्वपूर्ण बात जो मैं बताना चाहता हूँ वो यह की protein +fat का संयोग carbohydrate + fat से बेहतर है क्योंकि प्रोटीन dry और rough होता है जो वसा के संयोग से सही संतुलन बनता है वसा में चिकनाई होती है यह संयोग उचित है और हानि कारक नहीं है वहीँ carbohydrate के गुण fat के सामान होने के कारण यह शारीर में जमा होकर शर्करा एवं cholesterol को बढ़ाता है. इसलिए घी एवं चिकनाई का एकदम त्याग करना हानिकारक है अल्प मात्रा में लेना उचित है तथा व्यायाम भी करते रहना चाहिए. प्रोटीन में जैसे चना मूंग सोयाबीन को पानी में गलाकर सुबह थोड़े से घी में सेक सकते हैं
आजकल हम लोग देख रहे हैं की लोग मधुमेह एवं ह्रदय रोग से ग्रस्त रहते हैं . चिकित्सकों द्वारा उन्हें परहेज की सलाह दी जाती है . परहेज के नाम पर सबकुछ त्याग देते हैं एवं रूखा सूखा भोजन करने लगते हैं . मेरे इस ब्लॉग का उद्देश्य यह है की वास्तव में परहेज किस तरह किया जाना चाहिए. किन्ही परिस्थितियों में पूर्ण रूप से परहेज आवश्यक हो जाता है क्योंकि उसमे रक्त में वसा की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है. उन्हें बिलकुल चिकनाई रहित भोजन करना उपयुक्त है .कुछ समय तक ऐसा करना ठीक है आप तब तक ऐसा करें जब तक लेवल सामान्य न हो जाए. अत्यधिक परहेज करने से शारीर में रूखापन बढ़कर अन्य विकार जैसे त्वचा का सूखना , जोड़ों में तकलीफ कमजोरी आ सकती है . शारीर को ठीक से काम करने के लिए बहुत सारी चिकनाई की जरूरत नहीं होती बहुत थोड़ी सी चिकनाई से काम हो जाता है यहाँ पर एक बहुत महत्वपूर्ण बात जो मैं बताना चाहता हूँ वो यह की protein +fat का संयोग carbohydrate + fat से बेहतर है क्योंकि प्रोटीन dry और rough होता है जो वसा के संयोग से सही संतुलन बनता है वसा में चिकनाई होती है यह संयोग उचित है और हानि कारक नहीं है वहीँ carbohydrate के गुण fat के सामान होने के कारण यह शारीर में जमा होकर शर्करा एवं cholesterol को बढ़ाता है. इसलिए घी एवं चिकनाई का एकदम त्याग करना हानिकारक है अल्प मात्रा में लेना उचित है तथा व्यायाम भी करते रहना चाहिए. प्रोटीन में जैसे चना मूंग सोयाबीन को पानी में गलाकर सुबह थोड़े से घी में सेक सकते हैं
Friday, July 9, 2010
adhik duble patle vyakti ko wajan bhadhne hetu
प्रिय मित्रों ,
कुछ लोग अत्यधिक मोटापे से परेशान हैं परन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो की बहुत दुबलेपन से भी परेशान हैं .वास्तव में हम यह सोचते हैं की वजन बढ़ने के लिए हमें ठूस ठूस कर खाना जरूरी है जो की गलत है . वास्तव में दुबले को लघु किन्तु स्निग्ध आहार लेना चाहिए इसका कारन ये है की हमें पहले ये समझना होगा की हमारी भोजन पचाने की क्षमता कैसी है. पहले पाचाकग्नी को बढ़ाने की ज़रुरत है . लघु मतलब हल्का जैसे की पहले की तुलना में कम लेकिन चिकनाई के साथ धीरे धीरे पाचक क्षमता बढ़ जाने पर अधिक आहार लें . आहार में कार्बोह्य्द्रेट प्रोटीन तथा वसा की संतुलित मात्रा होनी चाहिए एक ही प्रकार का आहार न लेते रहें .तथा सभी प्रकार की सब्जी थोड़ी थोड़ी मात्र में लें १ कटोरी सब्जी १ कटोरी दाल ४ चपाती घी लगी हुयी १ कटोरी चावल सलाद खीरा टमाटर पत्ता गोभी ये भी होना चाहिए १ गिलास छाछ .खाने के बीच में थोड़ो थोडा पानी पी सकता है.
एक यह भी बात है की एक बार में बहुत सारा खा लेने से अच्छा है ४-४ घंटे के अंतर से थोडा थोडा खाया जाए.
कुछ लोग अत्यधिक मोटापे से परेशान हैं परन्तु कुछ ऐसे भी हैं जो की बहुत दुबलेपन से भी परेशान हैं .वास्तव में हम यह सोचते हैं की वजन बढ़ने के लिए हमें ठूस ठूस कर खाना जरूरी है जो की गलत है . वास्तव में दुबले को लघु किन्तु स्निग्ध आहार लेना चाहिए इसका कारन ये है की हमें पहले ये समझना होगा की हमारी भोजन पचाने की क्षमता कैसी है. पहले पाचाकग्नी को बढ़ाने की ज़रुरत है . लघु मतलब हल्का जैसे की पहले की तुलना में कम लेकिन चिकनाई के साथ धीरे धीरे पाचक क्षमता बढ़ जाने पर अधिक आहार लें . आहार में कार्बोह्य्द्रेट प्रोटीन तथा वसा की संतुलित मात्रा होनी चाहिए एक ही प्रकार का आहार न लेते रहें .तथा सभी प्रकार की सब्जी थोड़ी थोड़ी मात्र में लें १ कटोरी सब्जी १ कटोरी दाल ४ चपाती घी लगी हुयी १ कटोरी चावल सलाद खीरा टमाटर पत्ता गोभी ये भी होना चाहिए १ गिलास छाछ .खाने के बीच में थोड़ो थोडा पानी पी सकता है.
एक यह भी बात है की एक बार में बहुत सारा खा लेने से अच्छा है ४-४ घंटे के अंतर से थोडा थोडा खाया जाए.
Wednesday, June 30, 2010
aahar sambandhi niyam
आयुर्वेद में आहार किस प्रकार से करना चाहिए , उस बारे में जानकारी भी दी गयी है. स्वस्थ रहने हेतु कैसे भोजन करना चाहिए/
उष्णं - खाना गर्म होना चाहिए. इससे वह भोजन पचाने के लिए उपयोगी पाचन शक्ति को बढ़ता है
स्निग्धं - खाना स्निग्ध अर्थात चिकनाई युक्ता होना चाहिए , जिससे वह आंतो के चलन में सहायक हो.
मत्रावत- मात्र अर्थात quantity का विचार करके ही खाना चाहिए जितनी मात्र आसानी सी पच जाए उतनी ही मात्र लें
जीर्णे- पूर्व में किये आहार के पच जाने के अस्चात ही लें.
अवीर्यविर्रुध्द्हम - वीर्य के विर्रुध्ध नहीं हो जैसे दही और बेसन , शीत और उष्ण एक साथ . दही और मछली एक साथ घी और शहद एक साथ नहीं लेना चाहिए
देश और काल के अनुसार , उचित भोजन लें . न बहुत जल्दी और नाही अधिक विलम्ब से मन लगाकर खाना चाहिए .
खाते समय अन्य विकल्प मन में नाही होना चाहिए मोबाइल बंद रखें और ज्यादा बात न करें .
उष्णं - खाना गर्म होना चाहिए. इससे वह भोजन पचाने के लिए उपयोगी पाचन शक्ति को बढ़ता है
स्निग्धं - खाना स्निग्ध अर्थात चिकनाई युक्ता होना चाहिए , जिससे वह आंतो के चलन में सहायक हो.
मत्रावत- मात्र अर्थात quantity का विचार करके ही खाना चाहिए जितनी मात्र आसानी सी पच जाए उतनी ही मात्र लें
जीर्णे- पूर्व में किये आहार के पच जाने के अस्चात ही लें.
अवीर्यविर्रुध्द्हम - वीर्य के विर्रुध्ध नहीं हो जैसे दही और बेसन , शीत और उष्ण एक साथ . दही और मछली एक साथ घी और शहद एक साथ नहीं लेना चाहिए
देश और काल के अनुसार , उचित भोजन लें . न बहुत जल्दी और नाही अधिक विलम्ब से मन लगाकर खाना चाहिए .
खाते समय अन्य विकल्प मन में नाही होना चाहिए मोबाइल बंद रखें और ज्यादा बात न करें .
Monday, June 21, 2010
अब एच.आई.व्ही पोजिटिव से घबराने की जरूरत नहीं क्लिक करें
अब एच.आई.व्ही पोजिटिव से घबराने की जरूरत नहीं क्लिक करें
Wednesday, June 16, 2010
आहार के बारे में भाग २ विगत पोस्ट से जारी
१ नाश्ते में प्रोटीन एवं फाइबर युक्त पदार्थों का सेवन अधिक करें । आप एक सप्ताह का दिएत प्लान भी कर सकते हैं। कुछ लोग पोहे के अत्यधिक शोकीन होतें हैं पोहा समोसा कचोरी के बिना वे नाश्ता किया नहीं मानते। किन्तु यदि १ दिन दलिया दुसरे दिन कॉर्न फ्लक्स तीसरे दिन पोहा चौथे दिन उबले चने पांचवे दिन वेज सेंडविच (खीरा टमाटर के स्लाइस वाले ) छटवे दिन उबला मूंग aऔर सातवे दिन कचोरी समोसा
२ प्रतिदिन वाक्(२ से३ किलो मीटर ) पर जाना न भूलें ।
३ इन सभी बातों को ध्यान में रखकर पालन करें मोटापा आपको छू भी नहीं पायेगा |
शुभ कामनाओं सहित
२ प्रतिदिन वाक्(२ से३ किलो मीटर ) पर जाना न भूलें ।
३ इन सभी बातों को ध्यान में रखकर पालन करें मोटापा आपको छू भी नहीं पायेगा |
शुभ कामनाओं सहित
डायटिंग / आहार नियमन के बारे में
आज मैं आपको आहार सम्बन्धी जानकारी देना चाहूँगा । जो लोग मोटापे से ग्रस्त हैं तथा वजन कम करना चाहते हैं वोह लोग इन बातों पर ध्यान दे
१ कुछ लोग मोटापा कम करने के लिए खाना पीना बिलकुल कम कर देते हैं अथवा सिर्फ एक समय भोजन करते हैं , इससे कमजोरी आना शरू हो जाती है मोटापा कम तो नहीं होता परन्तु शरीर शिथिल हो जाता है।
२ कुछ लोग घी तेल चिकने (वसा युक्त पदार्थ ) बिलकुल बंद कर देते हैं जो की हानि करक है। इससे शरीर में रूक्षता /रूखापन आता है शरीर कड़क और त्वचा मुरझा जाती है । यहाँ यह बात विचार करने योग्य है की भैंस का घी हानिकारक होता है जिसमे पोली अन्सचुरातेद फैट की मात्र अधिक होने के कारन लेकिन इस की जगह गाय का घी उपयोग में लाया जाता है तो वह हितकर है।
३ कुछ लोग जोश में आकर अंधाधुंध व्यायाम करते हैं तथा सोचते हैं की दो ही दिनों में वजन घटा लेंगे । यह शरीर के लिए अत्यधिक हानिकारक है। वजन कम करना के लिए सबसे सिम्पल वाकिंग जोग्गिंग करें |
लगातार अगली पोस्ट पर ............
लगातार अगली पोस्ट पर ............
Saturday, June 12, 2010
सौन्दर्य और आयुर्वेद
सुंदरता बरकरार रखने के लिए कुछ ऐसे घरेलू उपाय हैं, जिससे आप सदा जवाँ बने रह सकते हैं। नींबू के रस में आँवले का चूर्ण मिलाकर बालों की जड़ में लगाने से बाल जल्दी बढ़ते हैं। इसके अलावा आँवले के चूर्ण को नारियल के तेल में मिलाकर लगाना चाहिए। त्वचा को प्रोटीन ट्रीटमेंट देते रहने के लिए कच्चे दूध में हल्दी मिलाकर लगानी चाहिए। इसके अलावा चने की दाल को पीसकर उसमें गुलाब जल मिलाकर लगाने से त्वचा में गजब का निखार आ जाता है। इससे चेहरे के रोएँ भी धीरे-धीरे हल्के होते हैं और दाग-धब्बे भी मिटते हैं।
आँखों के आसपास के काले धब्बे को मिटाने के लिए कच्चे दूध को रुई में भिगोकर लगाएँ। बाजार में मिलने वाले फेसवॉश का इस्तेमाल करने की अपेक्षा बादाम पीसकर उसमें मलाई और ठंडा दूध मिलाकर लगाएँ। इससे आपकी त्वचा तरोताजा हो जाएगी और रौनक भी बनी रहेगी। इसका उपयोग कर आप चाहें तो रोज कर सकती हैं ।
नींबू सौंदर्य बढ़ाने में जबसे ज्यादा कारगर है। नहाने के पानी में नींबू का रस मिलाकर नहाने से ताजगी मिलती है। नींबू के रस में शहद मिलाकर बालों में लगाने से उसका रूखापन दूर होता है। 10 दिन के अंतराल में नींबू मिले गर्म पानी में पुदीना और तुलसी मिलाकर भाप लेने से निखार आता है।
NOW NO WORRY FOR AIDS PLEASE VISIT www.ihelathcarelabs.com
आँखों के आसपास के काले धब्बे को मिटाने के लिए कच्चे दूध को रुई में भिगोकर लगाएँ। बाजार में मिलने वाले फेसवॉश का इस्तेमाल करने की अपेक्षा बादाम पीसकर उसमें मलाई और ठंडा दूध मिलाकर लगाएँ। इससे आपकी त्वचा तरोताजा हो जाएगी और रौनक भी बनी रहेगी। इसका उपयोग कर आप चाहें तो रोज कर सकती हैं ।
नींबू सौंदर्य बढ़ाने में जबसे ज्यादा कारगर है। नहाने के पानी में नींबू का रस मिलाकर नहाने से ताजगी मिलती है। नींबू के रस में शहद मिलाकर बालों में लगाने से उसका रूखापन दूर होता है। 10 दिन के अंतराल में नींबू मिले गर्म पानी में पुदीना और तुलसी मिलाकर भाप लेने से निखार आता है।
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Thursday, June 10, 2010
aaj kaa mantra
जोड़ों के दर्द में एक गिलास गर्म पानी में नीबू निचोड़कर दिन में 8 से 10 बार पिएँ।
* जोड़ों पर नीम के तेल की हल्की मालिश करने पर आराम मिलता है।
* लौकी का गूदा तलवों पर मलने से उनकी जलन शांत होती है।
* शरीर में किसी भी भाग या हाथ-पैर में जलन होने पर तरबूज के छिलके के सफेद भाग में कपूर और चंदन मिलकर लेप करने से जलन शांत होती है।
* घमौरियों में सरसों के तेल में बराबर का पानी मिलाकर फेंट लें व घमौरियों पर लगाएँ, शीघ्र आराम मिलेगा।
* गरमियों में जब नाक से खून आने लगे तो रोगी को कुरसी पर बिठाकर उसका सिर पीछे कर दें और हाथ ऊपर। रोगी को मुँह से साँस लेने को कहें। कपूर को घी में मिलाकर रोगी के कपाल पर लगाएँ। खून आना बंद होने पर सुगंधित इत्र सुंघाएँ।
* तेज गरमी से सिर दर्द होने पर गुनगुने पानी में अदरक व नीबू का रस व थोड़ा सा नमक मिलाकर पीने से आराम मिलता है।
NO PANIC FOR AIDS NOW VISIT WWW.ihealthcarelabs.com
* जोड़ों पर नीम के तेल की हल्की मालिश करने पर आराम मिलता है।
* लौकी का गूदा तलवों पर मलने से उनकी जलन शांत होती है।
* शरीर में किसी भी भाग या हाथ-पैर में जलन होने पर तरबूज के छिलके के सफेद भाग में कपूर और चंदन मिलकर लेप करने से जलन शांत होती है।
* घमौरियों में सरसों के तेल में बराबर का पानी मिलाकर फेंट लें व घमौरियों पर लगाएँ, शीघ्र आराम मिलेगा।
* गरमियों में जब नाक से खून आने लगे तो रोगी को कुरसी पर बिठाकर उसका सिर पीछे कर दें और हाथ ऊपर। रोगी को मुँह से साँस लेने को कहें। कपूर को घी में मिलाकर रोगी के कपाल पर लगाएँ। खून आना बंद होने पर सुगंधित इत्र सुंघाएँ।
* तेज गरमी से सिर दर्द होने पर गुनगुने पानी में अदरक व नीबू का रस व थोड़ा सा नमक मिलाकर पीने से आराम मिलता है।
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