प्रिय मित्रों नमस्कार ,
लम्बे अंतराल के बाद आपके समक्ष प्रस्तुत हुआ हूँ, आज मैं आपको मानस रोगों के कारण बतलाऊँगा जैसा की आचार्यों ने शास्त्रों में वर्णन किया है , मनुष्य की उत्पत्ति में चौबीस तत्वों का संयोग है , इनमे मन , बुद्धि अहंकार यह तत्व मनुष्य की सोचने समझने और यत्न पूर्वक काम करने में मदद करते हैं , इन्ही विकृति से मानस रोग उत्पन्न होते हैं ,
१. अत्यधिक धूम्रपान एवं मद्यपान (शराब ) पीने के कारण मस्तिष्क के केंद्र प्रभावित होते हैं , बोलने चलने के साथ बुद्धि का भी नाश करते हैं , इनके सेवन से नाड़ियों में दुर्बलता और विवेक का नाश होता है ,मनुष्य अवसाद का शिकार हो जाता है, मद्यपान करने के बाद मनुष्य जिस स्फूर्ति का अनुभव करता है उसका कारण यह है की शराब अपने तीक्ष्ण और शीघ्र गति करने के कारण मन और बुद्धि को उत्तेजित करती है और मनुष्य के मन में एक साथ अनेक विचार आने लगते हैं वह कभी प्रसन्ना तो कभी दुखी हो जाता है , इस उत्तेजना के कारण मन और बुद्धि थक जाते हैं , इसके कारण मनुष्य अवसाद का शिकार हो जाता है .
२. किसी पवित्र स्थल पर अपवित्र कार्य करने के कारण किसी देव गुरु भद्र पुरुष का अपमान करने से , मैं जानता हूँ की आजकल के युग में कोई इस बात को इतना महत्वा नहीं देता पर शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है जिसके पीछे भी रहस्य है , यह बात भी परम सत्य है , इसके पीछे वैज्ञानिक कारण क्या हैं यह तो नहीं पता पर
ऐसा देखा गया है .
३. मन में किसी दुर्भावना को रखना , किसी के प्रति शत्रुता रखना , यदि आप किसी के प्रति द्वेष भावना रखते है तो आप स्वयं को भी तनाव ग्रस्त और चिंतित पाते हैं , मन में बदले की भावना रखना यह भी मानस रोगों के कारण है हमें अपने मन में क्षमा और दया रखना चाहिए , क्षमा करने से मन साफ़ होता है और इसके बाद आप तनाव मुक्त हो जाते हैं , जैन दर्शन में तो क्षमा का बहुत महत्वा बताया है
अभी और भी बहुत से कारण हैं इसकी चर्चा आगे करूंगा .
बहुत सुन्दर जानकारी प्राप्त हो रही है आपके ब्लोग से
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद