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Friday, September 30, 2011

Preventive Cardiology Through Ayurveda part 2

प्रिय मित्रों नमस्कार ,
                                आप सभी को नवरात्री के इस पावन पर्व पर हार्दिक अभिनन्दन . मातारानी आप सभी को सुख समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य दे . पिछले ब्लॉग में मैंने आपको आपको हृदय रोग से बचाव की चिकित्सा के बारे में बताया था . वास्तव में हमारे देश में विशेष कर महानगरों में बढती हुयी हृदय रोगियों की संख्या एक चिंता का विषय है .क्योंकि आज कल युवाओं में भी हृदय रोग देखा गया है . वास्तव में यदि कुछ समय निकाल कर हम अपने शरीर के ऊपर विचार करें तो हम पाएंगे की हमें थोड़े से चलने फिरने में दम फूल जाता है , शरीर में भारीपन महसूस होता है , शरीर में स्फूर्ति का अभाव है . क्योंकि हमारा अधिकतर समय ऑफिस में कुर्सी पर बैठे हुए जाता है , हम भूख लगने पर पास किसी कैंटीन से समोसे या ओइली खाना खा कर फिर से काम पर लग जाते हैं . हमें बार बार चाय पीने या काफी पीने अथवा सिगरेट पीने का व्यसन लग जाता है . इन सभी क्रिया कलापों से हृदय पर अत्यधिक  कार्यभार बढ़ जाता है . क्योंकि रक्त में गाढ़ा पण बढ़ जाता है , धीरे धीरे ये कोलेस्ट्रोल के रूप में नसों में जमा होने लगता है.
                                             यहाँ पर कुछ महानुभाव ये सोचते हैं की हम रात दिन भूखे रह कर और सलाद खा कर कोलेस्ट्रोल कम कर सकते हैं , मैं उनसे कुछ हद तक सहमत हूँ लेकिन आप यह बताएं के इस सब से आप रक्त में बढे हुए कोलेस्ट्रोल को तो कम कर सकते हैं लेकिन क्या आप नसों में जमे कोलेस्ट्रोल को कम कर पाएंगे ?........................ नहीं ,

इसलिए हम सीरम कोलेस्ट्रोल की रिपोर्ट से अधिक आश्वस्त नहीं हों सकते . इस कार्य को करने के लिए पंचकर्म की क्रियाओं की आवश्यकता है जो आयुर्वेद चिकित्सक के द्वारा की जा सकती है .


इन क्रियाओं में वमन , विरेचन  ये दो प्रमुख हैं ..........

Dr.Abhishek Goel  09425759700,09713677782

Wednesday, September 28, 2011


प्रिय मित्रों नमस्कार ,
                                 आप सभी के प्रेम और आशीर्वाद के साथ मधुमेह और उससे जुडी बहुत सारी ऐसी समस्याओं के इलाज के सम्बन्ध में शिविर लगा रहा हूँ . मधुमेह के साथ तो वैसे बहुत सारी समस्याएं हैं लेकिन उनमे विशेषकर Retinopathy, nephropathy and other microvascular and macrovascular complications  प्रमुख हैं , वास्तव में इन समस्याओं के लक्षण बहुत कालांतर से समझ में आते हैं . इसलिए आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार स्वस्थस्य स्वास्थय रक्षणं , आतुरस्य विकार प्रशमनं चेती . वास्तव में हमें इस बात का भ्रम रहता है की हम स्वस्थ हैं क्योंकि रोग के लक्षण और रोग का शारीर में प्रसार होने में बहुत अंतर है . हम सिर्फ लक्षणों को देखकर समझते हैं की हमें बीमारी है लेकिन लक्षण उत्पन्न तब होते हैं जब बीमारी बहुत बढ़ जाती है , लेकिन तब ये कहावत कही जाती है ." अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गयी खेत ". एक और महत्त्वपूर्ण बात की मधुमेह के रोगियों को ह्रदय रोग का खतरा सामान्य यानि की बिना मधुमेह की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की तुलना में पांच गुना अधिक होता है . 
                                                                                

Saturday, September 17, 2011

Preventive Cardiology through Ayurveda

              
प्रिय मित्रों नमस्कार ,

हम सभी जानते हैं की आज कल की भाग दौड़ से भरी ज़िन्दगी में  हमें जीवन शैली की अनियमितताओं का सामना करना पड़ता है . अनियमित आहार , सही तरह से आराम न कर पाना फास्ट फ़ूड जंक फ़ूड इत्यादि के कारण हमारे शारीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ जाती है , जिसे की आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं में (L.D.L., V.L.D.L.) के नाम से जाना जाता है , जिसके बढ़ जाने से इनकी परत धमनियों और शिराओं में जम जाती है . जिसके कारण धमनियों और शिराओं को क्षति पहुचती है और उनकी दीवारों पर thrombocyte जाकर चिपक जाते हैं , जिसके कारण धमनियां और शिराएँ सिकुड़ जाती हैं , और शारीर के महत्त्वपूर्ण अंग जैसे की हृदय , फुफ्फुस वृक्क , मस्तिष्क इत्यादि में रक्त संचार की कमी के कारण इन अंगो में स्थाई क्षति हो सकती है . जिन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं  Stroke, Angina , Ischemia, Mayo cardial Infarction ,Ischaemic renal disease ,and renal failure इत्यादि के नाम से संबोधित करता है .
                                                         इन सभी स्तिथियों के होने पर अल्पायु में ही हम दवाइयों पर निर्भर होकर सारा जीवन गुज़ार देते हैं . इसके बाद भी आपको सलाह दी जाती है अधिक श्रम न करें , भार न उठायें , भाग दौड़ न करें .....
                             वास्तव में ४० वर्ष की आयु के बाद ये समस्याएँ हमें घेर लेती हैं , इससे बचने का उपाय हैं 
१. पंचकर्म चिकित्सा द्वारा शरीर का शोधन करवाना 
२. तत्पश्चात २ माह तक नियमित औषध सेवन करना 
३.चिकित्सक द्वारा निर्देशित आहार और दिनचर्या का पालन  करना 
आजकल बड़े बड़े अस्पतालों में जो Heart Operations हो रहे हैं .उनमे अत्यधिक व्यय होता है ,लेकिन इसके बाद भी आपको जीवन भर दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ता है ,वो भी अत्यधिक परहेज के साथ .
आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा के द्वारा शारीर के भीतर जमी हुयी अशुद्धियों को शोधन प्रक्रिया द्वारा बाहर निकाला जाता है ,तथा आयुर्वेदिक औषधों के द्वारा शारीर को बल देने वाली औषधियों के प्रयोग से हृदय को मजबूत और अधिक कार्यक्षम बनाया जा सकता है , आपको मात्र दो माह की औषध सेवन के पश्चात Hypertension , fatigue , जैसी कोई भी समस्या नहीं रहेगी .
                                                                                       आप आत्मनिर्भर होकर सारा जीवन सुख पूर्वक निर्वाह कर सकते है 
आपके उत्तम स्वस्थ्य की कामना के साथ ........
Dr.Sandeep shah  (09229455119)
Dr.Abhishek Goel (09713677782, 09425759700) 

Friday, August 26, 2011

My Address for Consultation

Dear Friends ,
                                                           Dr.Abhishek Goel                             
                                             House no. C-211      Near Ayushman Hospital,
                                             Infront of Panchmukhi Hanuman Mandir , Shahpura          
                                                            Bhopal (M.P.)                                         
                                Contact no.- 09713677782, 09425759700                                        

      * Please note that i will be available  from 9.am to 3 pm . 

Wednesday, August 10, 2011

वाजीकरण चिकित्सा

जो औषध वंश परंपरा को स्थापित कराती है , अर्थात जिसके सेवन के पश्चात न सिर्फ पुरुष स्वयं रति शक्ति से परिपूर्ण होता है ,अपितु उससे उत्पन्न संतान भी उत्तम वीर्य से युक्त होकर ,स्वस्थ होने के साथ प्रजोत्पादन में समर्थ होती है .इसके सेवन से पुरुष अश्व के समान बलशाली होकर स्त्री गमन करता है , तथा स्त्रियों को अति प्रिय हों जाता है , इसके सेवन से शरीर सुपुष्ट हों जाता है . वृद्ध अवस्था में भी उत्तम संतान जनक वीर्य उत्पन्न होता रहता है . जो संतान उत्पत्ति का मूल है उसे वाजीकरण कहते हैं .........

Saturday, July 9, 2011

रसायन चिकित्सा

प्रिय मित्रों नमस्कार , आज मैं आपको आयुर्वेद के सबसे महत्त्वपूर्ण अंग रसायन चिकित्सा के बारे में आपको बताऊँगा . विशेषतः देखा जाए तो आधुनिक चिकित्सा शास्त्र रोग होने के पश्चात चिकित्सा के उपाय बताता है ,किन्तु आयुर्वेद रोग से बचने के उपाय पहले बताता है यदि फिर भी किसी कारण वश रोग हो जाये तो चिकित्सा के  उपाय बताता है .

१ रसायन चिकित्सा क्या है ?
२ इससे क्या लाभ हैं?

रसायन अष्टांग आयुर्वेद  अर्थात आठ अंगों से युक्त आयुर्वेद का वह भाग है जिसके द्वारा उत्तम स्वास्थय  तथा दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है .दीर्घायुष्य और उत्तम स्वास्थय तभी प्राप्त हो सकता है जब शरीर के सभी अंग सकुशल हों तथा शरीर इ रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्तम हो .इन्ही उद्देश्यों की प्राप्ति  हेतु रसायन चिकित्सा की जाती है . इस चिकित्सा के विधिवत सेवन से दीर्घ आयु , स्मृति (स्मरण शक्ति ) मेधा (समझ कर ग्रहण करने की शक्ति ) उत्तम आरोग्य क लाभ , तरुण वय अर्थात अकाल में वृद्ध न होना इत्यादि लाभ होते हैं .

Tuesday, July 5, 2011

ayurved chikitsakon ke naam


प्रिय मित्रों नमस्कार ,
                           आज मैं शिरोधारा और नस्य के विषय में और उनके मानस तथा neurological disorders के सम्बन्ध में विचार करना चाहूंगा तथा साथ ही साथ आप सभी वैद्यों के मत भी जानना चाहूँगा . हम सभी जानते हैं की वायु रजो गुणात्मक है तथा वात प्रकृति  के व्यक्ति का मन भी रजोगुण से भरा रहता है . वायु के गुणों में एक गुण ये भी कहा गया है "नियंता प्रणेता च मनसः" यानि के वायु जो है वह मन का नियंत्रण करता है तथा साथ में प्रेरक भी है .
          यहाँ जिस वायु विशेष के बारे में कहा गया है ,वोह शास्त्रोक्त विभाजन के आधार पर प्राण वायु है . मानस रोगों में नस्य तथा शिरोधारा का महत्व इसी से सिद्ध है की इन दोनों चिकित्सों से मस्तिष्क में प्रकुपित वायु क शमन होता है . चूंकि शिर यह उत्तमांग कहा गया है क्योंकि इस अंग से शारीर की  सभी क्रियाएँ नियंत्रित होती हैं .
                                                                          आज कल हम देखते हैं की मनुष्य की प्रवृत्ति राजसिक होती जा रही है , जिसके कारण अनेक मानसिक विकार हो रहे हैं , .
                         

Wednesday, June 15, 2011

about brain power

प्रिय मित्रों नमस्कार ,
                                 क्या आप जानते हैं की हमारे मस्तिष्क में ज्ञान की उत्पत्ति कैसे होती है . ज्ञान को प्राप्त करने में मन बुद्धि और अहंकार का संयोग होता है तब ज्ञान का अनुभव होता है. यहाँ अहंकार का अर्थ घमंड नहीं , अहम् यानि की मैं कार यानि की करना , यानि के मैं इस ज्ञान को स्वीकार करता हूँ. 
                                                                                                                            बहुत से लोगों का प्रश्न होता है , की मेरा बालक या बालिका पढाई में एकाग्र नहीं है , उसका मन इधर उधर भटकता है. स्मरण शक्ति कमज़ोर है . मेरा मानना है की यह कोई बड़ी समस्या नहीं है , क्योंकि मैं मानता हूँ की यहाँ मन का कार्य होता है , मन के संयोग के बिना ज्ञान नहीं होता . जैसे की कोई व्यक्ति किसी भी फ़िल्मी गीत को सुनकर तुरंत याद कर लेता है या हो जाता है , क्योंकि उसका मन उस गाने में लग गया था. इसी लिए सबसे पहले जब तक मन उस बात को ग्रहण नहीं करेगा वो बात बुद्धि तक नहीं पहुचेगी . बुद्धि तक नहीं पहुची तो अहम् याने की मैं उसे कैसे स्वीकार करूंगा. 

वैसे ही किसी को कोई बात समझनी है या सिखानी है तो सबसे पहले उस व्यक्ति के लिए बात रुचिकर बनानी होगी . आजकल कंप्यूटर के द्वारा बहुत सारे शिक्षण कार्यक्रम होते हैं ,
                                                                                                          जहां तक एकाग्रता का प्रश्न है , प्राणायाम और अनुलोम विलोम से बढाई जा सकती है , आयुर्वेद में शिरोधरा चिकित्सा भी मस्तिष्क को बल देती है , 
             मेरा कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है की एकाग्रता स्वयं बढाई जा सकती है लेकिन स्मरण शक्ति को बढ़ने के लिए शिरोधरा का महत्त्वपूर्ण योगदान है..........

Sunday, May 15, 2011

giloy/guduchi/amruta...

प्रिय मित्रों, 
                 नमस्कार गिलोय , गुडूची या अमृता , ये नाम उस अमृत समान गुणकारी औषध के हैं जिसके बारे में जितना बताया जाये उतना कम है, यहाँ में आपको इसके कुछ विशेष महत्वपूर्ण गुणों के बारे में बताऊँगा. इसका सबसे ख़ास कार्य है रोग प्रति रोधक क्षमता को बढ़ाना . इसके सेवन से उच्च रक्त चाप यानि की ( high blood pressure) की समस्या दूर होती है. क्योंकि इसके तिक्त और कषाय रस के कारण यह कोलेस्ट्रोल को कम करता है. यह बात आप स्वयं इसके सेवन के पश्चात अनुभव करेंगे , क्योंकि इसके सेवन से रक्त चाप सुधरता है तथा एक विशेष प्रकार की स्फूर्ति तथा हल्कापन लगता है. स्वाद में कड़वा होता है लेकिन इसका कडवापन अधिक देर तक जिव्हा पर नहीं रहता . 
                                        यह शारीर का शोधन (purification) करता है , कैंसर कर्करोग में यह विकृत कोशिका के प्रसार को रोकता है तथा उपचार में सहयोगी सिध्ध होता है , 
                                                                                        वास्तव में बताने को तो बहुत कुछ है लेकिन गागर में सागर नहीं भरा जा सकता इस लिए इतना ही कहूँगा. इस औषध के प्रयोग अनेक हैं , पर वे चिकित्सक के ज्ञान पर निर्भर हैं ,
                                        

Wednesday, May 4, 2011

stan paan

प्रिय मित्रों नमस्कार , 
                                लम्बे समय के बाद आपके समक्ष  उपस्थित हुआ हूँ . आज मैं एक ऐसी समस्या को लेकर विचार विमर्श करना चाहता हूँ. जिस विषय से अधिकतर लोग अनभिज्ञ हैं. मेरा आज का विषय है स्तन पान , हम सभी जानते हैं की माँ का दूध शिशु के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है , क्योंकि वह शिशु के विकास tके लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. आज कल आहार विहार संबंधी गलतियों के चलते रस धातु की विकृति हो जाती है , जिसके कारण स्त्रियों में स्तन्य (मिल्क) की उतपत्ति नहीं होती या होती भी है तो वह दोष युक्ता होता है जिस से शिशुओं में अनेक प्रकार की बीमारिया होने की संभावना होती है 
                                                                              वास्तव में प्रकृति ने प्रत्येक जीव जंतु को अलग बनाया है . कई लोग माता का दूध न स्त्राव होने की स्तिथि में गाय अथवा भैंस का दूध शिशु को देते हैं जो उसके मानसिक शारीरिक और बौद्धिक विकास में अवरोध उत्पन्न करता है . 
                                                                                        बहुत से लोगों को यह भी जानकारी नहीं है की यदि माँ का दूध नहीं निकलता है तो इस का उपचार संभव है . आयुर्वेद संहिताओं में इस समस्या एवं इसके उपचार के सम्बन्ध में वर्णन मिलता है . 
                                                याद रखिये माँ का स्थान इस संसार में भगवान भी नहीं ले सकते . ऐसी समस्या के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक का परामर्श अवश्य ले . 
                                                                                                   धन्यवाद ........

Monday, March 21, 2011

ghrit kumari(Aloe vera)

प्रिय मित्रों आप सभी को होली एवं भाई दूज की हार्दिक शुभकामनाये . आज मैं आपको ऐसे औषधीय पौधे के बारे में बताना चाहता हूँ जो की वास्तव में प्रकृति का उपहार है. हम सभी जानते हैं की एलो वेरा जिसे की आम बोलचाल की भाषा में ग्वार पाठ या घृत कुमारी कहा जाता है. इसका प्रयोज्य अंग इसके डंठलों में पाया जाने वाला चिकना पदार्थ है जिसे पल्प कहा जाता है.
                                                                       आजकल इसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधनों में किया जाता है. परन्तु यह मात्र इसी उपयोग के लिए नहीं है ,इसके अन्य बहुत सारे महत्वपूर्ण उपयोग हैं . जिसमे सबसे अधिक महत्वपूर्ण है की अचानक जल जाने या कट जाने पर इसके लगाने से तुरंत आराम मिलता है. पेप्टिक अल्सर में यानि की अन्त्रों में छाले हो जाने पर इसके रस को पीने से छालों का घाव भर जाता है और एसिडिटी में आराम मिलता है , 
                                  मधुमेह में इसका उपयोग करने पर यह रक्त शर्करा के नियमन में मदद करता है तथा यकृत एवं अग्नाशय के चयापचय में सुधार लता है. 
अत्यधिक मद्यपान करने से लीवर में उत्पन्न विकारों को दूर करने में मदद करता है . कैंसर में इसका उपयोग एंटी ओक्सिडेंट के रूप में किया जाता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने में मदद मिलती है. 
                                                                                                                                  इसीलिए तो कहते हैं आयुर्वेद अमृत के सामान है . जय हिंद .......... 

Wednesday, March 16, 2011

holi me twacha rog

प्रिय मित्रों ,
                    नमस्कार आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनायें.  होली रंगों का त्यौहार है , यदि हम चाहते हैं की हमारी होली सुखद और सौहाद्रपूर्ण गुज़रे तो हमें कुछ बातों का ध्यान  रखना होगा. होली में कई बार घटिया रंगों का इस्तेमाल किया जाता है , कई बार रंगों में अम्लता पायी जाती है . जिससे त्वचा को नुक्सान पहुँच सकता है. जहां तक संभव हो होली गुलाल से ही मनाई जाए. इससे दो लाभ होंगे एक त्वचा  को नुक्सान नहीं होगा और दूसरा पानी की बचत होगी. 
                                        और एक विशेष बात होली के दिन किसी भी प्रकार का नशा न करें क्योंकि बहुत सारे लोग भांग का नशा करते हैं , बहुत से लोग शराब भी पीते हैं .इन सभी वजहों से दुर्घटना होने की संभावनाएं
 होती हैं.   
                होली खेलने जाने से पहले अपने पूरे शारीर पर नारियल तेल लगा लें. यह आपकी त्वचा पर सुरक्षा कवच का कार्य करेगा . रंगों से यदि कोई विकार उत्पन्न होता है तो त्वचा को साफ़ पानी से धोकर उस पर ग्वार पाठा का रस लगाना चाहिए.

Sunday, March 6, 2011

dear foreign user

dear friends,
             i would like to inform you that for English translation of my blogs please log on to www.ayulifeclinic.wordpress.com . all my previous blogs which i have written in hindi will be available in this site, i genuinely understand that foreign users of this blog suffer language problem to understand hindi,
                                                                                           your's faithfully Dr. Abhishek Goel

Tuesday, February 1, 2011

आयुर्वेदमन्त्र: aids ka ilaaz ab sambhav hai

आयुर्वेदमन्त्र: aids ka ilaaz ab sambhav hai

aids par vijay

प्रिय मित्रों ,
                     अनेक वर्षों के अथक परिश्रम के बाद डाक्टर परवीन जैन जो की लुधियाना की हैं उन्होंने आयुर्वेद औषध द्वारा एड्स का उपचार ढूंढ निकाला है. यदि कोई भी व्यक्ति जिसे एड्स हो जिस पर सभी उपचार असफल हो चुके हो तो निराश न हो . इस खतरनाक बीमारी का इलाज अब संभव है ,
                                                                 संपर्क करें -आयु लाइफ  क्लिनिक , डॉ. अभिषेक गोएल , सोनल अपार्टमेन्ट ,अक्सिस बैंक के पास , अशोकनगर (मध्य प्रदेश ) मोबाइल नो.  09713677782.

मित्रों इलाज़ पूर्णतः आयुर्वेदिक पध्धति के द्वारा आहार यानि के diet प्लान , योग तथा आयुर्वेदिक औषधों के द्वारा किया जायेगा ,पीड़ित व्यक्ति को एक सप्ताह के अंदर ही लक्षणों में सुधार आएगा तथा भूख लगने लगेगी वजन बढ़ने लगेगा तथा स्तामिना भी बढ़ने लगेगी .
                                    शीघ्र संपर्क करें 


aids ka ilaaz ab sambhav hai






Thursday, January 20, 2011

herpes zoster

प्रिय मित्रों ,
                आज मैं आपको हेर्पेस जोस्टर जिसे की आयुर्वेद में विसर्प व्याधि के नाम से जाना जाता है , ये बीमारी बहुत ही कष्ट दायक होती है क्योंकि इसमें भयंकर पीड़ा होती है .इसके लक्षण हैं ज्वर याने की बुखार आना सारे शरीर में लाल रंग की छोटी छोटी पीतिकाएं या फुंसियां हो जाती हैं जो एक स्थान से शुरू होकर बढती जाती हैं और फैलती जाती हैं जिस स्थान पर बढती हैं वहां जलन दर्द और कभी कभी खुजली होती हैं . इस ज्जलन से बचने के लिए घरेलु उपचार के रूप में नारियल तेल का उपयोग किया जा सकता है . आहार में स्निग्ध और शीत आहार जैसे से गोघृत में बने पदार्थ अनार का रस दूध चावल मीठी चीज़ का सेवन करें , खट्टी चीज़ों का परहेज़ करें .सैट धौत घृत का सेवन करें जिससे जलन शांत होती है अग्नि बढती है ,भूख लगती है. आयुर्वेद चिकित्सक इस बीमारी में विरेचन यानि पर्जेतिव का प्रयोग करते हैं जिससे शीघ्र लाभ मिलता है . चंद्रप्रभा वती का सेवन भी लाभ दायक होता है.

Friday, January 7, 2011

sheet lehar se bachav ke upaay

मेरे प्रिय ब्लॉगर साथियों , इस वर्ष शीत ऋतू का भयंकर प्रकोप संपूर्ण भारत में फैला हुआ है , तापमान अत्यधिक न्यूनतम होता जा रहा है , इस के चलते कई स्थानों पर ठण्ड के कारण मरने वालों की संख्या में वृद्धि हो रही है , इस ब्लॉग में मैं आपको ठण्ड से बचाव के उपाय बताऊँगा ,
१. सर्वप्रथम अपने सभी महत्वपूर्ण कार्य दिन में निपटाने का प्रयास करें. दिन सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात कही भी आवागमन का निषेध करें .
२. भोजन में उष्ण वीर्य पदार्थों को सम्मिलित करें जैसे की सरसों लहसुन तिल गुड और इनसे बने पदार्थों का सेवन करें.
३. प्रातःकाल गर्म पानी से स्नान पश्चात तिल या सरसों के तेल से प्रतिदिन मालिश करें और गर्म कपडे इन्नर इत्यादी का उपयोग करें
४. वाहन मोटर साइकल का प्रवास नहीं करें , शीतल वायु से हानि हो सकती है