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Saturday, October 30, 2010

naye clinic ke baare me

प्रिय मित्रों नमस्कार ,
                             आप लोगों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये ,आप सभी का जीवन मंगलमय और स्वास्थ्यप्रद रहे ऐसी

भावना के साथ आयु लाइफ क्लिनिक के सभी सदस्यों की और से बधाई . आप लोगों से शीघ्र ही पुनः वार्तालाप होगा, नयी जानकारियों के साथ  ,

Tuesday, October 19, 2010

manas rog aur ayurved

प्रिय मित्रों , मानस रोगों के उपचार के लिया आयुर्वेद में शिरोधरा का महत्वपूर्ण योगदान है . इस चिकित्सा से मनुष्य के मस्तिष्क को आराम मिलता है , कई बार anxiety and depression के केस देखने को मिलते हैं जिनमे की मनुष्य की सोचने और समझने की शक्ति हीन हो जाती है , confusion and dilemma बना ही रहता है . मनुष्य की सोच विचार सही करता भी है तो वह अपनी भावनाओं को सही तरह से व्यक्त नहीं कर पाता जिसके कारण गुस्से और चिड्चिदेपन का शिकार हो जाता है .
                                                         शिरोधरा प्रातःकाल में की जाने वाली आयुर्वेदीय पंचकर्म therapy है .इस के द्वारा अनिद्रा , मानसिक तनाव अशांति और अन्य CNS AND पनस अर्थात brain and spinal chord and other neurological disorders में लाभ होता है , इसके साथ आहार विहार और औषध का प्रयोग किया जाता है जो मानसिक स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त करने में मदद  करता है .

Monday, October 18, 2010

manas rogon ke baare me...........

प्रिय मित्रों , आज मैं मानस रोगों के अन्य कारणों के बारे में बताऊँगा और साथ में उनसे बचाव के उपाय भी बताऊँगा .
१. किसी प्रिय व्यक्ति अथवा वस्तु के विछोह में. इस के कारण मन उद्वेलित होता रहता है.

अब मानस रोगों से बचाव के बारे में बतलाऊँगा .
१. हम सभी जानते हैं की हमारे मस्तिष्क के दो भाग होते हैं ( two cerebral hemispheres) होते हैं जो की परस्पर विपरीत दिशाओं की मानसिक एवं शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं , यह हुयी आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की बात अब आयुर्वेदानुसार  नाड़ियों का वर्णन है इडा और पिंगला . अपने कभी अनुभव किया हो तो नाक के  एक छिद्र से गर्म और दुसरे से ठंडी हवा का वहां होता है इसका अर्थ यह है यह दोनों नाड़ियाँ शरीर का तापमान का नियंत्रण रखती हैं , वास्तव में इन दोनों का सही संतुलन अतिआवश्यक है , वास्तव में मस्तिष्क को सही कार्य करने के लिए दो भागों का सही संतुलन आवश्यक है. यह संतुलन प्राणायाम और योग के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है . योग के द्वारा मानसिक एवं शारीरिक क्रियाओं में संतुलन के द्वारा ही स्वस्थ रहा जा सकता है . अगले ब्लॉग में अन्य उपायों के बारे में बतलाऊँगा.

Thursday, October 7, 2010

maanas rog

प्रिय मित्रों नमस्कार ,
                               लम्बे अंतराल के बाद आपके समक्ष प्रस्तुत हुआ हूँ, आज मैं आपको मानस रोगों के कारण बतलाऊँगा जैसा की आचार्यों ने शास्त्रों में वर्णन किया है , मनुष्य की उत्पत्ति में  चौबीस तत्वों का संयोग है , इनमे मन , बुद्धि अहंकार यह तत्व मनुष्य की सोचने समझने और यत्न पूर्वक काम करने में मदद करते हैं , इन्ही विकृति से मानस रोग उत्पन्न होते हैं ,
१. अत्यधिक धूम्रपान एवं मद्यपान (शराब ) पीने के कारण मस्तिष्क के केंद्र प्रभावित होते हैं , बोलने चलने के साथ बुद्धि का भी नाश करते हैं , इनके सेवन से नाड़ियों में दुर्बलता और विवेक का नाश होता है ,मनुष्य अवसाद का शिकार हो जाता है, मद्यपान करने के बाद मनुष्य जिस स्फूर्ति का अनुभव करता है उसका कारण यह है की शराब अपने तीक्ष्ण और शीघ्र गति करने के कारण मन और बुद्धि को उत्तेजित करती है और मनुष्य के मन में एक साथ अनेक विचार आने लगते हैं वह कभी प्रसन्ना तो कभी दुखी हो जाता है , इस उत्तेजना के कारण मन और बुद्धि  थक जाते हैं , इसके कारण मनुष्य अवसाद का शिकार हो जाता है .
२. किसी पवित्र स्थल पर अपवित्र कार्य करने के कारण किसी देव गुरु भद्र पुरुष का अपमान करने से , मैं जानता हूँ की आजकल के युग में  कोई इस बात को इतना महत्वा नहीं देता पर शास्त्रों में इसका उल्लेख मिलता है जिसके पीछे भी रहस्य है , यह बात भी परम सत्य है , इसके पीछे वैज्ञानिक कारण क्या हैं यह तो नहीं पता पर

ऐसा देखा गया है .
३. मन में किसी दुर्भावना को रखना , किसी के प्रति शत्रुता रखना , यदि आप किसी के प्रति द्वेष भावना रखते है तो आप स्वयं को भी तनाव ग्रस्त और चिंतित पाते हैं , मन में बदले की भावना रखना यह भी मानस रोगों के कारण है हमें अपने मन में क्षमा और दया रखना चाहिए , क्षमा करने से मन साफ़ होता है और इसके बाद आप तनाव मुक्त हो जाते हैं , जैन दर्शन में तो क्षमा का बहुत महत्वा बताया है 
अभी और भी बहुत से कारण हैं इसकी चर्चा आगे करूंगा .