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Friday, September 30, 2011

Preventive Cardiology Through Ayurveda part 2

प्रिय मित्रों नमस्कार ,
                                आप सभी को नवरात्री के इस पावन पर्व पर हार्दिक अभिनन्दन . मातारानी आप सभी को सुख समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य दे . पिछले ब्लॉग में मैंने आपको आपको हृदय रोग से बचाव की चिकित्सा के बारे में बताया था . वास्तव में हमारे देश में विशेष कर महानगरों में बढती हुयी हृदय रोगियों की संख्या एक चिंता का विषय है .क्योंकि आज कल युवाओं में भी हृदय रोग देखा गया है . वास्तव में यदि कुछ समय निकाल कर हम अपने शरीर के ऊपर विचार करें तो हम पाएंगे की हमें थोड़े से चलने फिरने में दम फूल जाता है , शरीर में भारीपन महसूस होता है , शरीर में स्फूर्ति का अभाव है . क्योंकि हमारा अधिकतर समय ऑफिस में कुर्सी पर बैठे हुए जाता है , हम भूख लगने पर पास किसी कैंटीन से समोसे या ओइली खाना खा कर फिर से काम पर लग जाते हैं . हमें बार बार चाय पीने या काफी पीने अथवा सिगरेट पीने का व्यसन लग जाता है . इन सभी क्रिया कलापों से हृदय पर अत्यधिक  कार्यभार बढ़ जाता है . क्योंकि रक्त में गाढ़ा पण बढ़ जाता है , धीरे धीरे ये कोलेस्ट्रोल के रूप में नसों में जमा होने लगता है.
                                             यहाँ पर कुछ महानुभाव ये सोचते हैं की हम रात दिन भूखे रह कर और सलाद खा कर कोलेस्ट्रोल कम कर सकते हैं , मैं उनसे कुछ हद तक सहमत हूँ लेकिन आप यह बताएं के इस सब से आप रक्त में बढे हुए कोलेस्ट्रोल को तो कम कर सकते हैं लेकिन क्या आप नसों में जमे कोलेस्ट्रोल को कम कर पाएंगे ?........................ नहीं ,

इसलिए हम सीरम कोलेस्ट्रोल की रिपोर्ट से अधिक आश्वस्त नहीं हों सकते . इस कार्य को करने के लिए पंचकर्म की क्रियाओं की आवश्यकता है जो आयुर्वेद चिकित्सक के द्वारा की जा सकती है .


इन क्रियाओं में वमन , विरेचन  ये दो प्रमुख हैं ..........

Dr.Abhishek Goel  09425759700,09713677782

Wednesday, September 28, 2011


प्रिय मित्रों नमस्कार ,
                                 आप सभी के प्रेम और आशीर्वाद के साथ मधुमेह और उससे जुडी बहुत सारी ऐसी समस्याओं के इलाज के सम्बन्ध में शिविर लगा रहा हूँ . मधुमेह के साथ तो वैसे बहुत सारी समस्याएं हैं लेकिन उनमे विशेषकर Retinopathy, nephropathy and other microvascular and macrovascular complications  प्रमुख हैं , वास्तव में इन समस्याओं के लक्षण बहुत कालांतर से समझ में आते हैं . इसलिए आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुसार स्वस्थस्य स्वास्थय रक्षणं , आतुरस्य विकार प्रशमनं चेती . वास्तव में हमें इस बात का भ्रम रहता है की हम स्वस्थ हैं क्योंकि रोग के लक्षण और रोग का शारीर में प्रसार होने में बहुत अंतर है . हम सिर्फ लक्षणों को देखकर समझते हैं की हमें बीमारी है लेकिन लक्षण उत्पन्न तब होते हैं जब बीमारी बहुत बढ़ जाती है , लेकिन तब ये कहावत कही जाती है ." अब पछताए होत का जब चिड़िया चुग गयी खेत ". एक और महत्त्वपूर्ण बात की मधुमेह के रोगियों को ह्रदय रोग का खतरा सामान्य यानि की बिना मधुमेह की बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति की तुलना में पांच गुना अधिक होता है . 
                                                                                

Saturday, September 17, 2011

Preventive Cardiology through Ayurveda

              
प्रिय मित्रों नमस्कार ,

हम सभी जानते हैं की आज कल की भाग दौड़ से भरी ज़िन्दगी में  हमें जीवन शैली की अनियमितताओं का सामना करना पड़ता है . अनियमित आहार , सही तरह से आराम न कर पाना फास्ट फ़ूड जंक फ़ूड इत्यादि के कारण हमारे शारीर में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ जाती है , जिसे की आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं में (L.D.L., V.L.D.L.) के नाम से जाना जाता है , जिसके बढ़ जाने से इनकी परत धमनियों और शिराओं में जम जाती है . जिसके कारण धमनियों और शिराओं को क्षति पहुचती है और उनकी दीवारों पर thrombocyte जाकर चिपक जाते हैं , जिसके कारण धमनियां और शिराएँ सिकुड़ जाती हैं , और शारीर के महत्त्वपूर्ण अंग जैसे की हृदय , फुफ्फुस वृक्क , मस्तिष्क इत्यादि में रक्त संचार की कमी के कारण इन अंगो में स्थाई क्षति हो सकती है . जिन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं  Stroke, Angina , Ischemia, Mayo cardial Infarction ,Ischaemic renal disease ,and renal failure इत्यादि के नाम से संबोधित करता है .
                                                         इन सभी स्तिथियों के होने पर अल्पायु में ही हम दवाइयों पर निर्भर होकर सारा जीवन गुज़ार देते हैं . इसके बाद भी आपको सलाह दी जाती है अधिक श्रम न करें , भार न उठायें , भाग दौड़ न करें .....
                             वास्तव में ४० वर्ष की आयु के बाद ये समस्याएँ हमें घेर लेती हैं , इससे बचने का उपाय हैं 
१. पंचकर्म चिकित्सा द्वारा शरीर का शोधन करवाना 
२. तत्पश्चात २ माह तक नियमित औषध सेवन करना 
३.चिकित्सक द्वारा निर्देशित आहार और दिनचर्या का पालन  करना 
आजकल बड़े बड़े अस्पतालों में जो Heart Operations हो रहे हैं .उनमे अत्यधिक व्यय होता है ,लेकिन इसके बाद भी आपको जीवन भर दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ता है ,वो भी अत्यधिक परहेज के साथ .
आयुर्वेदिक पंचकर्म चिकित्सा के द्वारा शारीर के भीतर जमी हुयी अशुद्धियों को शोधन प्रक्रिया द्वारा बाहर निकाला जाता है ,तथा आयुर्वेदिक औषधों के द्वारा शारीर को बल देने वाली औषधियों के प्रयोग से हृदय को मजबूत और अधिक कार्यक्षम बनाया जा सकता है , आपको मात्र दो माह की औषध सेवन के पश्चात Hypertension , fatigue , जैसी कोई भी समस्या नहीं रहेगी .
                                                                                       आप आत्मनिर्भर होकर सारा जीवन सुख पूर्वक निर्वाह कर सकते है 
आपके उत्तम स्वस्थ्य की कामना के साथ ........
Dr.Sandeep shah  (09229455119)
Dr.Abhishek Goel (09713677782, 09425759700)